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________________ ६८ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ इस पइन्नेसें जो तेरेको भ्रांति होती है सो छोड दे॥ इति पइन्ना निर्णयः ।। (२२) पूर्वपक्षः- देवसिप्रतिक्रमणकी आदिमें और राइप्रतिक्रमणके अंतमें चैत्यवंदना करनी किसी शास्त्रमें भी नही कही है, तो फेर तुम क्यों करते हो ? ॥१॥ और चौथी थुइ चैत्यवंदनामें करते हो, सो किस किस शास्त्रमें है ॥२॥ अरु श्रुत देवताका कायोत्सर्ग किस किस शास्त्रमें करना कहा है ? ॥३॥ उत्तरपक्षः- हम इन तीनो प्रश्नोका एक साथही उत्तर देते है । श्रीप्रवचनसारोद्धारे ॥ पडिक्कमणे चेइहरे, भोयण समयंमि तहय संवरणे ॥ पडिक्कमण सुयण पडिबोह, कालिंय सत्तहा जइणो ॥१२॥ पडिक्कमउ गिहिणो विहु, सत्तविह पंचहाउ इयरस्स ॥ होइ झहन्नेण पुणो, तीसुवि संजासु इय तिविहं ॥१३॥ अत्रवृत्तिः ॥ साधूनां सप्तवारान् अहोरात्रमध्ये भवति चैत्यवंदनं गृहिणः श्रावकस्य पुनश्चैत्यवंदनं प्राकृतत्वाल्लुप्तप्रथमैकवचनान्तमेतत् । तिस्रः पंच सप्तवारा इति । तत्र साधूनामहोरात्रमध्ये कथं तत्सप्तवारा भवंतीत्याह पडिक्कमणेत्यादि । प्राभातिक प्रतिक्रमणपर्यंते ततश्चैत्यगृहे तदनु भोजनसमये तथाचेतिसमुच्चये भोजनानंतरंच संवरणे संवरणनिमित्तं प्रत्याख्यानंहि पूर्वमेव चैत्यवंदने कृते विधीयते तथा संध्यायां प्रतिक्रमण प्रारंभे तथा स्वापसमये तथा निद्रा मोचनरुप प्रतिबोध कालिकंच सप्तधा चैत्यवंदनं भवति यतेर्जातिनिर्देशादेकवचनं यतीनामित्यर्थः । गृहिणः कथं सप्तपंचतिस्त्रो वारांश्चैत्यवंदनमित्याह पडिक्कमउइत्यादि । द्विसंध्यं प्रतिकामतो गृहस्थस्यापि यतेरिव सप्तवेलं चैत्यवंदनं भवति । यः पुनः प्रतिक्रमणं न विधते तस्य पंचवेलं जघन्येन तिसृष्वपि संध्यासु ॥ अस्य भाषा ॥ साधुयोंकों एक अहोरात्रिमें सातवार चैत्यवंदना करनी और श्रावकोंकों तीनवार, पांचवार अरु सातवार करनी तिसमें प्रथम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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