________________
६२
चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१
(१९) पूर्वपक्ष :- आवश्यकादि शास्त्रोंमें मृतक साधुके परठया पीछे तीनथुईकी चैत्यवंदना कही है तिन शास्त्रोंका पाठ यह है । चेइ घरु उवस्सए, वाहाई तीतउ थुई तिन्नि । सारवण व सहीए, करेए सव्वं वसहि पालो ॥१॥ अविहि परिठवणा ए, काउस्सगोउ गुरु समीवंमि ।। मंगल संति निमित्तं, थउ त्तउ अजिय संतीणं ॥२॥ ते साहुणो चेइय घरे ता परिहायं तीहिं थुईहिं चेइयाणि वंदिउ आयरिय सगासे इरियावहिउँ पडिक्कमिउं अविहि परिठावणिया ए काउस्सग्गो कीरइता हे मंगल पच्छद्धं तउ अन्ने विदोव ए हायंते कटृति उवस्सए वि एवं
चेइय वंदण वज्जइ त्ति । कल्पचतुर्थोद्देशकसामान्यचूर्णी ॥ कल्प विशेष चूर्णि कल्पबृहद्भाष्यावश्यकवृत्तिकृद्भिरन्यथा व्याख्यातं । यदुत चैत्यवंदनानंतरमजितशांतिस्तवो भणनीयो नो चेत्तदा तस्य स्थानेऽन्यदपि हीयमानं स्तुतित्रयं भणनीयमिति । तथाहि चेइय घर गाहा । चेइय घर गच्छंति चेइयाई वंदित्ता संति ॥ निमित्तं अजियसंतित्थउ परियट्टिज्जइ तिन्नि वाथुती उ परिहायंती उ कट्टियंति तउ आगंतु आयरिय सगासे अविहि पारिठावणीयाए काउस्सग्गो कीरइ । कल्पविशेष चू० उ०४ तथा चेइय घरुवस्स एवा, आगम्मुस्सग्ग गुरुसमीवंमि ॥ अविहि विगिंचणी याए, संति निमित्तं थतो तत्थ ॥१॥ परिहायमाणियाउ, तिन्नि थुईउ हवंति नियमेण ॥ अजियसंतित्थगमा, इयाउकमसो तहिं नेउ ॥२॥ कल्पबृहद्भाष्ये तथा उठाणाई दोसाउ, हवंति तत्थेव काउसग्गंमि आगम्मुवस्सयं गुरु सगासे अविहि ए उस्सग्गो कोइ भणेज्जा तत्थेव किमिति काउसग्गो न कीरइ भन्नइ उठाणाई दोसा हवंति तउ आगम्म चेइय घरं गच्छंति चेइयाणि वंदित्ता संतिनिमित्तं अजिय संतित्थयं पढंति तिन्निवा थुतीउ परिहायमाणीउ कट्टिजति तओ आगंतु आयरियसगासे अविहि विगिंचणियाए काउस्सग्गो कीरइ । इत्यावश्यकवृत्तौ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org