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________________ ३७६ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ (६४) इसकों जब लोक पूछते है कि, तुमारा कौनसा गच्छ है ? तब ये धूर्ततासें कहता है कि, हमारा सुधर्मगच्छ है. इसी धूर्तताके सिद्ध करने वास्ते इसने इस पोथीमें अपनी पट्टावली लिखनेमें स्वकपोल कल्पना लिखी है; सो ऐसे है, इसने अपने गच्छके छ ६ नाम लिखे है । तिनमें निग्रंथ गच्छ १ सुधर्म कौटिक गच्छ २ सुधर्मचंद्रगच्छ ३ सुधर्म वनवासीगच्छ ४ सुधर्मवडगच्छ ५ सुधर्म तपगच्छ ६ सुधर्म महातपगच्छ ऐसे नाम लिखे है परंतु तपगच्छकी पट्टावलि श्रीमुनिसुंदरसूरिकृत, तपगच्छ पट्टावलि श्रीधर्मसागरोपाध्याय कृत, तथा अन्य पुरुषोकी लिखी हुइ कितनी ही पट्टावलियां वांचनेमें आइयां है, तथा खरतरगच्छीय जयसोमकृत पट्टावलि, तथा क्षमाकल्याणजी कृत पट्टावलि, तथा अन्य खरतरगच्छीय रचित पट्टावलियोंमें किसी जगेभी सुधर्मकौटिक, सुधर्मचंद्र, सुधर्म वनवासी, सुधर्म वडगच्छ, सुधर्म तपगच्छ, सुधर्म महातपगच्छ, ऐसे नाम लिखे हमने देखे नहीं है, किंतु, निग्रंथगच्छ १ कौटिकगच्छ २ चंद्रगच्छ ३ वनवासीगच्छ ४ वडगच्छ ५ तपगच्छ ६ ऐसे नाम लिखे है । तथा उपाध्याय श्रीमद्यशोविजय गणिजीने भी साढेतीन सौ गाथाके स्तवनमें यही उपर लिखे सुधर्म शब्द रहित छ नाम लिखे है, परंतु इसके कल्पित नाम नही लिखे है। फक्त इसीने ही यह नाम धूर्ततासें लिखे है। इस धूर्तताके करनेमें इसकों येह फल है कि, जब कोइ इनकों पूछता है कि, तुमारे गच्छका क्या नाम है ? तब येह कहते है कि, हमारा सुधर्मगच्छ है, वा सुधर्म महातपगच्छ है, यह धूर्ततासे येह नाम इस वास्ते कहते, और लिखते है कि, हमकों तपगच्छीय कोइ न समझे क्योंकि, जेकर हम तपगच्छका नाम लेवेंगे, तो लोक हमकों पूछेगे कि, तुमारी समाचारी तपगच्छसें क्यों नही मिलती है ? तब हम क्या उत्तर देवेंगे, इस वास्ते सुधर्मगच्छ, वा सुधर्म महातपगच्छ कहेंगे, तो तपगच्छका नाम छूट जानेसें लोकोंके प्रश्नोंसें भी बच जावेंगे भो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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