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________________ ३७४ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २ जिन यक्षणीयां, छप्पनदिक्कुमारीयां, येह व्यंतरनिकायांर्गत मालूम होती है । और शासनदेवीतो जिन यक्षिणीही है, अन्य नही । सरस्वती और श्रुतदेवी, ये दोनों पर्यायांतर नाम है; ऐसा मालूम होता है। परंतु किसी भी शास्त्रमें सरस्वती श्रुतदेवीकी आयु निकायादि हमने देखी नहीं है, इस वास्ते ग्रंथकी साक्षी नही लिखी है। (६३) अब सुज्ञ जनों विचार तो करो कि जो इसने स्वकपोल कल्पना करके झूठ लिखा है, तिस कल्पनाके अक्षर सेनप्रश्नमें है नही; इस वास्ते इसकों मिथ्यावादी उत्सूत्र लिखनेवाला कहना योग्य है, वा नहीं ? इसी तरे इसने इस पोथी थोथीमें बहुतही झूठ लिखा है; इस वास्ते इसके कथनकों भव्य जीवोंने सत्य नहीं मानना । और इस पापलेखका फल जन्मांतरमें होवेगा, सो तो येही बिचारे धनविजय राजेंद्रसूरि भोगेंगें ॥ दैवसिक रात्रिक प्रतिक्रमणकी आद्यंतमें, और जिन चैत्यमें, चार थुइसें चैत्यवंदना करनी, और दैवसिक प्रतिक्रमणमें श्रुतदेवता क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करणा, और तिनकी थुइयां कहनीयां, इत्यादि कथन ग्रंथोकी साक्षी सहित चतुर्थस्तुतिनिर्णय ग्रंथमें तथा इस ग्रंथमें लिख आए है, इस वास्ते यहां फेर नही लिखा है। इस धनविजयने चतुर्थस्तुतिनिर्णयका यथार्थ उत्तर नहीं लिखा है, किंतु निःकेवल झूठी स्वकपोल कल्पना करके बडी पोथी मूर्खोकों आश्चर्य उत्पन्न करने वास्ते जिन सिद्धांतकी अपेक्षा रहित, अभिमान दुराग्रह रुप हाथी उपर चढके, अपने डूबने, और अन्य जीवोंकों डबोने वास्ते यह पोथी लिखके छपवाई है । क्योंकि इसकी गुप्त छानी धूर्त्तताकों कोइ सुबोध पुरुषही समझेगा । और अन्य जौन सें कुछक अक्षर बोध रहित तो ऐसेही समझेंगेंकि, वाह ! धनविजय महाराज बड़े ज्ञानी है, कि जिनोंने इतना सारा परिश्रम लेके तीन थुइ स्थापनरुप इतनी बडी पोथी बनाई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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