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________________ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ ॥ उत्तर ॥ हे सौम्य ! मैरा यह शक्ति नही है कि, मैं किसी भी सुविहित आचार्यके लेखकों असत्य कलं. क्यों कि दोनो ही तरेके शास्त्रोमें लेख है। ॥ प्रश्न ॥ किस किस शास्त्रमें प्रथम ईर्यापथिकी और पीछे करेमिभंतेका उच्चार करना कहा है ? ॥ उत्तर ॥ श्री तपगच्छीयगणि श्रीरुपविजयजी अपने रचे प्रश्नोत्तरोमें ऐसे लिखतें है। तथा च तत्पाठः ॥ जैनागमवचः श्रुत्वा नत्वा सद्गुरुपत्कजं ईर्यापथिकचर्चासं वक्ष्ये सन्मार्गदीपिकां ॥१॥ जे आत्मार्थी जीव होय तिणे पचांगी प्रमाणे सामायिकादिक क्रिया करवी ते पचांगी नाम कहीछीए । सूत्र १ नियुक्ति २ भाष्य ३ चूर्णि ४ वृत्ति ५ तथा सुविहित आचार्यकृत ग्रंथ तेहने अनुसारे जे भव्य जीव क्रिया करे ते जिनमार्गनो आराधक थाइ, अने हमणा कलिकालना दूषण थकी पोत पोताना गच्छने कदाग्रहें करीने सूत्रने लोपीने कदाग्रहें करीने श्रावकने विपरीत मागें चलवें तेहने इम कहे जे सामायिक दंडक उचरीने पछे ईरियावही पडिक्कमो पण सुविहित गच्छनी विधि सूत्रने अनुसारी ईर्यावही पडिक्कमीने सर्व पडिक्कमणुं पोसह सामायिक सज्झायादिक क्रिया करवी, पण ईर्यावही पडिक्कम्या विना पडिक्कमणादिक सामायिक करवू ते आगमथी विरोधी छे।। (३०) ते उपर श्रीमहानिशीथ सूत्रनी साखि लखी छे. ॥ तथाहि ॥ से भयवं जहुत्तविण उवहाणेण पंचमंगल महासुअक्खं धमहिज्झित्ताणं पुव्वाणुपुव्वीए पच्छाणुपुव्वीए अणाणुपव्वीए सीरवंजणमत्ता बिंदुपयाक्खरविसुद्धथिरपरिचियं काऊणमहतापबंधेणं सुत्तत्थंच विण्णायतउणं किं महिचज्झे गोयमा इरियावहियं से भयवं केणंअटेणं एवं वुच्चइ जयाणं पंचमंगलं महासुअक्खं धमहिज्झित्ताणं पुणो इरियावहिअं अहीए गोयमा जेएस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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