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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ कोडी क्योंकर हो सकते है ? ऐसी कोई आशंका न करे, इस वास्ते दूसरा मत लिखा है । परं पूर्वाचार्योंके लेखकों झूठा करने वास्ते नही लिखा है । और श्री हीरविजयसूरिजीने सो लाखकी कोडी लिखी है, और वीसकी कोडी निषेध करी है । और मैंने कोई जैनतत्वादर्शमें ऐसा नही लिखा है कि, वीसकी कोडी ही माननी चाहिये, इस वास्ते श्रीधनविजयजी मृषावादी और जैनशास्त्रोका विरोधी है क्यों कि इसकों तपगच्छके आचार्योंके लेख प्रमाण नहीं है, और उनोंकी निंदा करी है, तथा तीन थुइ माननेका पंथ झूठा निकाला है । । पहिलां तो इसने प्रतिक्रमणकी आद्यंतकी थुइ निषेध करी । जब प्रतिवादीयोंने सताया तब कहने लगाकि, जिनमंदिरमें चौथी थुइ नही कहनी, जब तिसका लेख देखा तब कहने लगा कि, पूजादि विशिष्ट कारणे करणी, अन्यथा नही । इत्यादिक झूठी स्वकपोल कल्पना करके, इस चिंतामणी समान मनुष्य जन्मको बिगाडा है । क्यों कि, नगर सेठ प्रेमाभाई श्री संघके बडे २ सेठोंकी सहि सहित अपने छपवाए पत्रमें प्रगट लिखते है कि,
" मुनि आत्मारामजी महाराज चार थोयो प्रतिक्रमणामां कहे छे, ते कोइ नवीन नथी । परंपरा पूर्व चालती आवेली छे. हालमां मु. राजेंद्रसूरिए प्रतिक्रमणमां त्रण थोयो कहेवानुं परुप्युं छे परंतु अहीयां अहमदावादमां आठ दश हजार श्रावकनो संघ कहेवाय छे. तेमां कोइ त्रण थोयो प्रतिक्रमणमां कहेवी एम अंगीकार कर्तुं नथी अने कोइ थोयो कहेता पण नथी "
अब विचार करो कि, जेकर उपर लिखे परिमाण इस श्रीधनविजय- राजेंद्रसूरिये प्ररूपणा नही करी तो, क्या अहमदावादके सेठोंकों पूर्वोक्त लेखका स्वप्न आया था ? नही आया । किंतु ही जैनशास्त्रके तथा जैनसंघ के विरोधी श्रीधनविजय - राजेंद्रसूरि ही मिथ्यात्वके उदयसें कही कोई प्ररूपणा, कही कोई प्ररूपणा करते फिरते है ।
अब इस पोथीमें प्रतिक्रमणकी आदिमें जघन्य प्रकारे और किसी
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