SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५६ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ कारणसें करे है, सोइ रीती आजकाल तपगच्छके साधुयोंमें चलती है, (६) उपाध्याय श्री यशोविजय गणीजीने श्री सीमंधर स्वामीजीकी स्वाध्यायकी १७ मी ढाल की १० मी गाथा में ऐसा लिखा है, तिसका टबा श्री गणी पद्मविजयजीने कीना है, सो निचे लिखा जाता है। "तास पाटें विजयदेवसूरिसरू ॥ पाट तस गुरु विजयसिंह धोरी ॥ जास हित सीखथी मार्ग ए अनुसरयो । जेहथी सवि टली कुमति चोरी । आज० ॥१०॥ अर्थ ।। वली तेने पाटे श्री विजयदेवसूरि थया तथा तेमना पाटें श्री विजयसिंहसूरि, ते गच्छनो भार वहेवाने वृषभ समान धोरी थया । जेमनी हित शीख आज्ञा पामीने में ए संवेग मार्ग आदरयों एटले ए भाव, जे श्रीयशोविजयजी उपाध्याये पण एओनी आज्ञा पामीने क्रिया उद्धार करयो तथा श्री विजयसिंहसूरिना शिष्य अनेक हता. तेमां सत्तर शिष्य सरस्वती बिरुदधारी हता. ते सर्वमा महोटा शिष्य पंडित श्री सत्यविजयगणी हता. तेमणे श्री पूज्यनी आज्ञा पामी क्रिया उद्धार कीधो ते माटे एम कडं जे मार्ग ए अनुसरयो के० ए संवेग मार्ग आदरयो जे आदरवा थकी तीर्थंकरअदत्त, गुरुअदत्त इत्यादि कुमति कदाग्रह रुप चोरी टल गयी । ए श्री आचार्योनी परंपरा कही ॥१०॥" कुछ हमारे वृद्ध गुरुयोंकी यह श्रद्धा नहीं थी के, रंगे हुए वस्त्र ही साधुको कल्पे है । किसी कारण के वास्ते रंगे है, सो कारणिक वस्त्र कोइ वैसा ही पुरुष दूर करेगा । इस वास्ते पूर्वोक्त तीनौ वस्तुयोंके वास्ते नि:केवल श्रीधनविजयजीने श्रीआत्मारामजी श्रीआनंदविजयजी ही की निंदा नही लिखि । कितुं सर्व तपगच्छके आचार्योकी, और साधुयोकी, तथा श्रावकोकी निंदा लिखि है। (७) तथा खरतरगच्छमें भी चार थूइसे प्रतिक्रमणाद्यंतमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy