SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ है, छोटी साखायोंका मूल बडी शाखायों है, फलोंका मूल फूल है, अंकूरका मूल बीज है, बीजका मूल सुभूमि है, तैसें सर्व धर्मोका मूल समाधि है. समाधि बिना जो अनुष्टान है सो सर्व अज्ञान कष्ट रुप है इस वास्ते पूर्वोक्त देवतायोंसें समाधि मागते है, वो समाधि तो मनके स्वस्थपणेसें होती है, और मनका स्वस्थपणा तब होवे जब शारीरिक तथा मानसिक, दुःख न होवे और भूख, खांसी, श्वास, रोग, शोष, ईर्ष्या, विषाद, प्रियविप्रयोग, शोक प्रमुख करके विधुर न होवे, तब स्वस्थपणा होवे. इस वास्ते परमार्थसें समाधिकी प्रार्थनाद्वारें इन पूर्वोक्त उपद्रवोका निरोध प्रार्थन करा है. ननु वितर्केन है आचार्य, सम्यग्दृष्टी देवतायोंकी इसतरें प्रार्थना करनेसे वो देव, वो समाधि, बोधि देनेकों समर्थ है ? वा नहीं है ? जेकर समर्थ नहीं होवे तबतो इनोकी प्रार्थना करनी निष्फल है, अरु जेकर समर्थ है तो दुर्भव्य अभव्यकोंभी क्यों नहीं देते है, जेकर तुम मानोगेंकी योग्य जीवोंकोंही देनेकू समर्थ है। परंतु अयोग्य जीवोंकू देने समर्थ नहीं है, तबतो योग्यताही प्रमाण हुइ, तब बकरीके गलेके स्तन समान तिन देवतायोंकी काहेकों प्रार्थना करनी चाहियें ? अब इनका उत्तर आचार्य देते है. हे भव्य तेरा कहना सत्य है. किंतु हमतो जैनमति है, और जैनमत स्याद्वादप्रधान है, सामग्री वै जिनकेति वचनात् ॥ तहां घटनिष्पत्तिमें मृत्तिकाके योग्यता होनेसें भी कुंभकार, चक्र, चीवर, डोरा, दंडादि भी तहां कारण है. जैसे यहां भी जीवके योग्यताके हूएभी ये पूर्वोक्त देवता तिस तिस तरेके विघ्न दूर करनेसें समाधि बोधि देनेमें निमित्तकारण होते है. इस वास्ते तिनकी प्रार्थना फलवती है. इति गाथार्थः ॥४७॥ (७७) इस आवश्यककी मूल गाथामें तथा इसकी चूर्णिमें प्रकट पणे समाधि और बोधिके वास्ते, सम्यग्दृष्टी देवतायोंकी प्रार्थना करनी कही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy