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________________ २० चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ पास चारित्र उपसंपत् लेके अपना जो अवश्यकार्य करनेका है, सो कर लेवेंगे, तिस्से इनके पर महाराज साहेबकाभी बडा उपकार होवेगा, क्योंके पूर्वाचार्योकी चली हूइ समाचारीका निषेध करके नवीन पंथ निकालनेसें कितनेक अल्प समजवाले जीवोंका चित्त व्युद्ग्राहित हो जोता है अरु नवीन नवीन प्रवर्ति देखनेसें कितनेक जीवोंकी श्रद्धाभी भ्रष्ट हो जाती है तिस्सें वो जीव धर्मकरणी करणेका उद्यमही छोड देता है, इसीतरें श्री वीतरागके मार्गमें बडा उपद्रव करनेका उद्यम छोड देवेंगे जिस्सें इनोकों बहोत लाभ होवेगा । अरु जैनमार्गका शुद्ध निर्दोष प्रवृत्ति चलनेसें शासनकाभी अच्छा प्रभाव दिखेंगा, ऐसा हमारा अभिप्राय था सो प्रस्तावनामें लिखके पूरण करा । ___ अब सकल देश निवासी श्रावकादि चतुर्विध श्रीसंघकों हमारी यह प्रार्थना है के पडिक्कमणेमें चार थोयों कहनेकी रूढी यद्यपि परंपरासें चली आती है, सो कोइ मतलबी पुरुष अपना किसी प्रकारका मतलब साधनेके लीये चार थोयोंके बदलेमें तीन अथवा दो किंवा एकज थोय कहेनेकी प्ररुपणा जो करते है उनका कहेना जो विवेकी जाणकर पुरुष है उनके हृदयमें तो प्रवेश नही कर सकता, परंतु कितनेक अज्ञ अरु अल्पसमजवाले भोले लोक है उनके हृदयमें कदापि प्रवेशभी कर सकता है, तो उन भोले लोकोंकों ये ग्रंथका उपदेश हो जावेगा । जिस्से उनको पूर्वोक्त मतवादीयोंका उपदेश पराभव न कर शकेगा । ऐसा उपकार बुद्धिसें यह महाराज श्रीमद् आत्मारामजी आनंदविजयजीने जो इस विषय पर ग्रंथ बनाया, सो हम छपवायकर प्रसिद्ध कीया है । इस्में श्रीजिनशासनकी यथार्थ प्रवृत्ति जो परंपरासें चली आती है सो अंखडित रहो अरु बहुत संसारी होनेकी बीक न रखनेवाले मतिभेदक जनोकी जो जैनमतसें विपरीत प्रवृत्ति है सो खंडित हो जाओ। यह हमारा आशीर्वाद है। किंबहुना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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