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________________ २०० चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ अपना नाम रखनेके लीये नवीन पंथ निकालनेका उपदेश करे तो आप नही सुनोगे अरु कोइ विकारी जनोके कथनसें पूर्वाचार्योके कहे कथनको त्रोड फोड करनेकी कुयुक्तियों करके जूठ हठ नही करोगे तो, अब अपने जैनमतमें कोइभी नवीन तिखल करे जिस्से ढुंढकोंकी तरे बहुतजनो दुर्गतिका अधिकारी हो जावे जैसा दुराग्रही फितुर होनेका भय मिट जावेगा. अरु जूठ कथन उपदेशक विकारी जनोकोंभी हमारा यह कहना है कि आपभी परभवमें इस्स कदाग्रहसें दुःख प्राप्त होवेगा जैसी भीती रखकर श्रीजिनवचनोंके पर श्रद्धधान ला कर कदाग्रह छोड द्यो, खरा समजवान हो तो यह एकभवमें अपना मुखसें जो जूठा बोल निकल चूका तिसका मिच्छामिदुक्कड सब जनोकें सम्मत देनेसें जो मानभंग होनेका दुःख तुमकों लगता है तिसकों सुख रुप समज ल्योकि आगें संसार तरना सुलभ हो जावेगा. यह बड़ा फायदा होवेगा. यही बात अपने हैयेमें दृढ करो. अरु यह भवमेंभी मिच्छामि दुक्कड देनेसें विवेकीजनोकें हृदयमें तो तुम महापुरुषोंकी न्याइ ठस जावेगें. क्योंकि जो प्रायश्चित लेकर आपना पापोंकी शुद्धि करता है तिसकों चतुर लोक तो बडे पंडितोसेंभी अधिक गिनते है तो फेर खरा विचार करो तो यह भवमें भी कुछ मानभंग नही होता है परंतु महत्त्व पणेकी प्राप्ति होती है, इसीतरें सत्य विचार करणे वाले पुरुषोंकों तो सब बात सुलभही होती है. तो फेर बहोत कहा कहना. (६६) तथा सिद्धराज जयसिंहके राज्यमें जिने कुमुदचंद्र दिगम्बरकों जीता, तथा जिने तेतीस हजार मिथ्यादृष्टीयोंकें घरोको प्रतिबोध किया, तथा जिने चौरासी सहस्र श्लोक प्रमाण स्याद्वादरत्नाकर ग्रंथकी रचना करी ऐसे सुविहित चक्र चूडामणी श्रीदेवसूरिजी हुआ, तिनोका रचेला जीवानुशासननामा प्रकरण है. तिस प्रकरणकी टीका श्रीउत्तराध्ययन सूत्रकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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