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________________ १९६ चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ तो जैसे श्रीहरिभद्रसूरि और श्रीअभयदेवसूरि जो यह पंचमकालमें सकल शास्त्रोंके पारंगामी थे, जो संपूर्ण श्रुतज्ञानी कहाते थे तिनो महापुरुषोंका वचन जो न माने तो क्या तिस अज्ञ जीवकों समजाने वास्ते श्रीमहाविदेहक्षेत्रसें कोइ केवलज्ञानके धरने वाले केवली भगवान् आवेगा? हम बहुत दिलगीरीसें लिखते हैकि यह जो तुम नवीन मतका अंकूर उत्पन्न करनेकी चाहना रखते हो की सम्यग्दृष्टी देवतादिकका कायोत्सर्ग न करना अरु थुइयांभी न कहनीयां सो किस शास्त्रमें ऐसा लेख देख कर कहते हो? किस शास्त्रमें ऐसा पाठ लिखा है कि सम्यग्दृष्टी देवतायोंका कायोत्सर्ग करनेसें अरु इनोका थुइयां कहनेसें पाप लगता है ? सो हमकों बतादो. (६५) जेकर तुम कहोगेकी भोले श्रावकोंकों पूर्वोक्त देवतायोंका तप करना, और पूजन करना कहा है, परंतु तत्त्ववेत्ता श्रावककों तो नही कहा है. तिसका उत्तर :- हे भव्य यहां तत्त्ववेत्तायोंकोंभी पूर्वोक्त देवतायोंका तपादि करना निषेध नही करा है. किंतु इस लोकके अर्थ न करना, परंतु मोक्षके वास्ते करे तो निषेध नही. ऐसा कथन है. जेकर आवश्यक बंदित्तुं सूत्रमें ॥ सम्मद्दिट्ठी देवा, दितु समाहिंच बोहिं च ॥ इस पाठकी चर्चा हम उपर लिख आए है. यह पाठ तो तत्त्ववेत्ता श्रावककोंभी प्रायें नित्य पठनेमें आता है. इस वास्ते धर्मकृत्योंमें विघ्न दूर करनेकों, पूर्वोक्त देवतायोंका तप, पूजन, कायोत्सर्ग अरु थुइ कहनी जानकर श्रावकोंको करनी चाहिये यह सिद्ध हुआ. तथा भोले श्रावकोंकोंभी पूर्वोक्त देवतायोंका तप करना, पूजन करना, यहभी मोक्ष मार्गही कहा है इस वास्ते धर्माभिरुची जनोंकों किसी अज्ञ जनके जूठे वचन सुनकर हठाग्रही होना न चाहियें, क्योंकि यह हूंडा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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