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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ समाधान कर दिखाया. फेरभी कितनेक ग्रंथोका पाठ लिख दिखलाते हैं ।
(६०) तथा श्रीराधनपुर अर्थात् श्रीराधणपुरके भांडागारमें पूर्वाचार्यकृत षडावश्यकविधि नामा ग्रंथ है, तिसका पाठ यहां लिखते है. षडावश्यकानि यथा ॥ पंचविहायारविसु, द्विहेउ मिह साहु सावगो वावि ॥ पडिक्कमणं सहगुरुणागुरुविरहे कुणइ इक्कोवि ॥१॥ वंदित्तु चेइयाई दाउं चउराइ ए खमासमणे ॥ भूनिहिय सिरोसयला इयारमिच्छोकडं देइ ॥२॥ सामाइय पुव्वमिच्छा, मी ठाइडं काउस्सग्गमिच्चाई ॥ सुत्तं भणिय पलंबिय, भुअ कुप्परधरियपहिरण ओ ॥३॥ घोडगमाई दोसेहि, विरहीयंतो करेइ उस्सग्गं ॥ नाहिअहो जाणुढं, चउरंगुल उद्धरिय कडिपट्टो ॥४॥ तत्थधरेइ हियए, जहक्कम दिणकए अईआरे ॥ पारेतु नमुकारेण, (इति प्रथममावश्यकम् ॥१॥) पढइ चउविसत्थयदंडं ॥५॥ इति द्वितीयमावश्यकम् ॥२॥ संडासगे पमज्झिय, उवविसिय अलग्गविय य बाहुजुओ ॥ मुहणं ,तगं च कायं, च पेइए यंचविसई हा ॥१॥ उठियठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं ॥ बत्तीसदोसरहियं, पणवीसावस्सग्गविसुद्धं ॥२॥ अह सम्ममवणयंगो, करजुअविहिधरिअपुत्तिरयहरणो ॥ परिचितइ अइयारे, जहक्कम गुरुपुरो वियडे ॥३॥अह उवविसीतुं (इति तृतीयमावश्यकम् ॥३॥) सुत्तं, सामायिय मायिय पढिय पयओ ॥ अब्भुठियम्मि इच्चा इ पढइ दुहउठिओ विहिणा ॥४॥ दाऊण वंदणंतो, पणगाइ सुजइ सुखामए तिन्नी ॥ किइकम्मं करियायरि, यमाइ गाहातिगं तिगं पढई ॥५॥ इति तुर्यमावश्यकम् ॥४॥ इय सामायिय उस्सग्गसुत्तमुच्चरिय काउस्सग्गठिओ ॥ चिंतइ उज्झोअचरि, त्तअइयार सुद्धिकए ॥६॥ विहिणा पारीअ (अयं लोगस्स द्वयात्मकश्चारित्रशुद्धयुत्सर्गः ॥१॥) समत्तस्स ६ सुद्धिहेडं च पढइ उज्झोअं ॥ तह सव्वलोअ अरिहंत चेई आराहणुस्सग्गं ॥७॥ काउं
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