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૨૫૩ चैत्रवदि सातमि पहुत घरे नंदऊ ए नंदऊ ए नंदऊ जा रविचंदो ॥९॥ पासडसूरिहिं गणहरह नेऊअगच्छ निवासो। तसु सीसिहि अंबदेव सूरिहिं रचियऊ ए रचियऊ ए रचियऊ समरारासो। एहु रासु जो पढइ गुणइ नाचिउ जिणहरि देह । श्रवाण सुणइ सो बयठऊ ए तीरथ ए तीरथ ए तीरथ जात्रफलु लेई ॥ १० ॥
॥ इति श्री संघपति समरसिंह रास : ।।
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