________________
२४७ आदिजिणपत्रीठ अम्हि जोइसउं ए। महासुदि चउदसि दूरदेसंतर संघ मिलिया तहिं अति अबाह ॥१॥ माणिके मोतिए चउकु मुर पूरइ रतनमइ वेहि सोवन जवारा। अशोकवृक्ष अनु आमू पल्लवदलिहि रितुपते राचयले तोरणमाला ॥२॥ देवकन्या मिलिय धवलमंगल दियइ किंनर गायहि जगतगुरो । लगनमहूरतु सुरगुरो साधए पत्रीठ करइ सिधसूरिगुरो ॥ ३ ॥ भुवनपति व्यंतरजोति सुर जयउ जयउ करइ समरि रोपिउद्दु धरमकंदो। दुंदुहि वाजिय देवलोक तिहअणुसीचिउ अमियरसे ॥ ४ ॥ देउमहादज देसलो संघपते ईकोतरु कुल ऊधरए। सिहरि चडिउ रंगि रूपि सोवनि धनि वीरि रतनि वृष्टि विरचियले।५। रूपमय चमर दुई छत्त मेघाडंबर चामरजुयल अनु दिन्न दुन्नि । आदिजिणु पूजिउ सहल कंतिहिं कुसुम जिम कनकमय आभरण ॥६॥ आरतिउ धरियले भावलभत्तारिहिं पुत्वपुरिस सग्गि रंजियले । दानमंडपि थिउ समर सिरिहि वरो सोवनसिणगार दियइ याचकजन ।७/ भत्ति पाणीय वरमुनि प्रतिलाभिय उच्चारिउ वाहइ दुहियदीण । वाविउ सुधम वितु सिद्धक्षेत्रि इंद्रउच्छवु करि ऊतरए ॥ ८ ॥ भोलियनंदणु भलह महोत्सवि आविउ समरु आवासि गनि । तेर इकहत्तरइ तीरथउद्धारु यउ नंदउ जाव रवि ससि गयणि ॥ ९ ॥
नवमी भाषासंघवाछल करी चौरि भले मारहंतडे पूजिय दरिसण पाय ।
सुणि सुंदरे पूजिय दरिसण पाय । सोरठदेस संधु संचरिउ मा० चउंडे रयणि विहाइ ॥ १ ॥ आदिभक्तु अमरेलीयइ मा० आविउ देसलजाउ । अलवेसरु अलज वि भिलए मा० मंडलिकु सोरठराउ ॥ २ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org