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________________ २४० गोत्र उदयकरु अवयरिउ ए तसु पुत्रु गोसलुसाहु त । तसु गेहिणि गुणमत भलीय आराहइ नियनाहु त ॥ १० ॥ संघपति आसधरु देसलु लूणउ तिणि जन्म्या संसारि त । रतनसिरि भोली लाच्छि भणउं तीहतणी य घरनारि त ॥११॥ देसलघरि लच्छी य निसुणि भोली भोलिमसार त । दानि सीलि लूणाघराणि लाछी भली सुविचार त ॥ १२ ॥ +MSeksi द्वितीय भाषारतनकुषि कुलि निम्मली य भोलीपुत्तु जाया । सहजउ साहणु समरसीहु बहुपुन्निहि आया ॥ १ ॥ लहूअ लगइ सुविचारचतुर सुविवेक सुजाण । रत्नपरीक्षा रंजवइ राय अनु राण ॥ २ ॥ तउ देसल नियकुलपईव ए पुत्र सधन्न । रूपवंत अनु सीलवंत परिणाविय कन्न ॥ ३ ॥ गोसलसुति आवासु कियउ अणहिलपुर नयरे । पुन्न लहइ जिम रयणमाहि नर समुद्रह लहरे ॥ ४ ॥ चउरासी निणि चउहटा वरवसहि विहार । मढ मंदिर उत्तंग चंग अनुपोलि पगार ॥ ५ ॥ तहिं अछइ भूपतिहिं भुवण सतखणि हि पसत्थो । विश्वकर्मा विज्ञानि करिउ धोइउ नियहत्थो ॥ ६ ॥ अमियसरोवरु सहसलिंगु इकु धरणिहिं कुंडल । कित्तिषंभु किरि अवररेसि मागइ आखंडलु ॥ ७ ॥ अज्ज वि दीसइ जत्थ धम्मु कलिकालि अगंजिउ । आचारिहिं इह नयरतणइ सचराचरु रंजिउ ॥ ८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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