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संघपति समरसिंह रास।
पहिलउ पणमिउ देव आदीसरु सेत्तुजसिहरे । अनु अरिहंत सव्वे वि आराहउं बहुभत्तिभरे ॥ १ ॥ तउ सरसति सुमरेवि सारयससहरनिम्मलीय । जसु पयकमलपसाय मूरुषु माणइ मन रलिय ॥ २ ॥ संघपतिदेसलपत्रु भणिसु चरिउ समरातणउ ए। धम्मिय रोल निवारि निसुणउ श्रवणि सुहावणउ ए ॥ ३ ॥ भरह सगर दुइ भूप चक्रवति त हूअ अतुलबल । पंडवपुह विप्रचंड तीरथु उधरइ अतिसबल ॥ ४ ॥ जावडतणउ संजोगु हुअउं सु दूसम तव उदए। समइ भलेरइ सोइ मंत्रि बाहडदेउ ऊपजए ॥ ५॥ हिव पुण नवी य ज वात जिणि दीहाडइ दोहिलए। खत्तिय खग्गु न लिंति साहसियह साहसु गलए ॥ ६ ॥ तिणि दिणि दिनु दिक्खाउ समरसीहि जिणधम्मवणि । तसु गुण करउं उद्योउ जिम अंधारइ फटिकमाणि ॥ ७ ॥ सारणि अमियतणी य जिणि वहावी मरुमंडलिहिं । किउ कृतजुग अवतारु कलिजुगि जीतउ बाहुबले ॥ ८॥
ओसवालकुलि चंदु उदयउ एउ समानु नहीं । कलिजुगि कालइ पाखि चांद्रिणउं सचराचरिहिं ॥९॥
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