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________________ MEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE. गुणनिधानसूरि-स्तुति। 小米小米的小兩 थंमपुरुसारकासारईसोवमं, नमवि सिरिपासजिणममलमुत्तमतमं; सकलसूरिंदसमुदायसोहाकरं, थुणिसु गुणनायगं गुणनिहाणं गुरुं. १ पट्टणे पवर नयरंमि सिरिवंसजो, आश सिरि साधरो अथि तस अंगजो; निउण नगराज नामेण इ झाइउ, भलिय लीलाइ देवीइ परिसोहिउ. २ पन्नर अडयाल एताण मह मंदिरे, माह मासंमि सेयंमि पखेवरे; पुत्तरयणं पहाए महा मंजुलं, रंजियं तस्स रूवेण भूमंडलं. आगया तत्थ सिद्धांतसायरगुरू, विहरमाणा जणानंदणे सुरुतरू, सेणीउ मेहकुमरव्व जिण अग्गए, तं कुमारं गुरूणं तहा अप्पए. ४ वरिसि बावन्नए विवह उत्सव भरे, सार संजमसिरी गहिय पट्टणपुरे; अप्प दिवसेहिं बहु गंध परि जाण ए, वयर सामिव्व सविसमय भरमाणए.५ जंबुनयरंमि पणसठिसंवच्छरे, भावसायर गुरू भावि गच्छेसरे; दिति सिरि मूरिपय तंमि सिरिवंसए, मंति धरणो तया बहु धणं विघ्पए.६ नयर तंबाबइ प्रागसब्भूओ, साह विजाहरो जीव यादव जूउ; गच्छनायक पयं दावए भावउ, जाण चरासीइ कइ जुग्गो आगड. ७ गुणनिहाणाभिहा सुहम सम मणहरा, गंगजल विमल कलकित्त धवलाधरा; पुव्वरस सरिस सुहसंत रस सायरा, बहू अवर साण विहरंत सूरीसरा. ८ इय अइसय भाजन सिरि जिनशासन, कानन पंचानन पवर; विबुहाबलि बोहण गुणमणि रोहण, गुणनिधान गुरुजयउ चिरु. ९ Hnlod . GEED.erodotcope इति श्रीगुरूणां स्तुतिः ।। EMOCROPERICKETE PICS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004917
Book TitleJain Aetihasik Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1926
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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