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दश गणधरों का उल्लेख आव० नि० गा० २९०, आव० मल टीका (पत्र २०९) आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। किंतु कल्पसूत्र सुबोधिका टीका (पत्र ३८१) में इसका स्पष्टीकरण किया है --"द्वौ अल्पायुष्कत्त्वादिकारणान्नोक्तौ इति टिप्पनके व्याख्यातम् ।"
इसी प्रकार गणधर के नाम सम्बन्ध में भी कुछ भेद है। कल्पसूत्र में 'शुभ' तथा पासनाह चरियं में (पत्र २०२) शुभदत्त नाम आया है। समवायांग में सिर्फ 'दिन्न' शब्द ही है। जबकि त्रिषष्टि० में 'आर्यदत्त ।'
-सम्पादक (ख) विशेष स्पष्टीकरण के लिए भ. पार्श्व एक समीक्षात्मक अध्ययन देखें -ले. देवेन्द्रमुनि (क) कल्पसूत्र की संकलना के समय से यह कालगणना की गई है । (ख) भगवान पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता प्रायः निर्विवाद है। इस सम्बन्ध में विशेष ऐति
हासिक गणवेषणा के लिए देखें --
१. चार तीर्थकर-पं० सुखलाल जी सिंघवी २. जन साहित्य का इतिहास भाग १--पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ३. इण्डियन एन्टीक्वेरी जि० ९५. १६० --डा० याकोबी के लेख
४. भगवान पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्यपन पृ. ६१-६९, ले० देवेन्द्रमुनि (क) समवायांग, सूत्र २४।१
ख) समवायांग सूत्र १५७--११ (ग) अर्हत् अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता वैदिक ग्रन्थों एवं ऐतिहासिक विद्वानों की गवेषणा से भी सिद्ध होती है।
अर्थवेद के माण्डूक्य, प्रश्न और मुण्डक उपनिषदों में अरिष्टनेमि का नाम आया है महाभारत के अनुशासन पर्व अध्याय १४९ में विष्णुसहस्रनाम में दो स्थानों पर 'शुरः शौरिजिनेश्वरः' पद आया है ---
"अशोकस्तारणस्तारः शूरः शौरि जिनेश्वर : ।५०।"
"कालिनेमि महावीरः शूरः शौरि जिनेश्वरः ।९२।" छांदोग्य उपनिषद् में देवकीपुत्र कृष्ण के उल्लेख से व्यक्त होता है कि उन्होंने. घोर अंगरिस से अहिंसा और नीति का उपदेश ग्रहण किया । श्री धर्मानन्द कौशाम्बी (भा० सं० अ० पृ० ३८ ) के अनुसार ये घोरअंगरिस नेमिनाथ ही थे, क्योंकि नेमिनाथ श्रीकृष्ण के धर्मगुरु थे यह प्राचीन जैन ग्रन्थों से प्रमाणित होता है (विशेष विवरण के लिए देखें--जैन साहित्य का इतिहास पूर्व पाठिका, पं० कैलाशचन्द्र जैन पृ० १७०)
(घ) भगवान् अरिष्टनेमि और श्री कृष्णः एक अनुशीलन पृ० ६०-६८ देवेन्द्रमुनि १०. सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्ढिए ।
समद्दविजए नाम, रायलक्खणसंजए । तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे प्रत्तो महायसो । भगवं अरिट्ठनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ।
--उत्तराध्ययन २२॥३-४ ११. अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ ।
-उत्तराध्ययन २२।३६ १२. एवं सच्चनमी नवरं समुद्दविजये पिया सिवा माता । एवं दढनेमी वि सव्वे एगगमा ।
---अन्तकृद्दशा, वर्ग ४, अ०९-१०
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