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परिशिष्ट -- २
( अर्थ-विवेचनान्तर्गत टिप्पणानि )
१. नवकार इक्क अक्खर, पावं फेडेइ सत्त अयराइं।
पन्नासं च पएणं, सागर पण-सय समग्गेणं ।। २. जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहीए जिण णमुक्कारं ।
तित्थयरनामगोअं, तो पावई सासयं ठाणं ।। ३. अद्वैव अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडीओ। ___ जो कुणइ नमुक्कारं, सो तइयभवे लहइ मोक्खं ।। ४. आगे चौबीसी हुइ अनन्ती, होशे बार अनन्त । ___ नवका रतणी कोई आद न जाणे, एम भाषे अरिहंत ।
--कुशललाभ वाचक ५. (क) स्थानाङ्ग सूत्र ४११ से तुलना करो (ख) दिगम्बर गर्भापहरण की घटना को नहीं मानते । वे महावीर के पांच कल्याण नक्षत्र ये मानते
है--(१) उत्तराषाढा (२) उत्तराफाल्गुनी, (३) उत्तरा (४) हस्तोत्तरा (उत्तराफाल्गुनी)
(५) स्वाति (ग) महात्मा बुद्ध के जीवन में भी चार मंगल प्रसंग है-(१) जन्म, (२) ज्ञान प्राप्ति, (३) धर्म
चक्र प्रवर्तन और (४) निर्वाण । ये चारों जहां होते हैं उस स्थान को बौद्ध परम्परा में तीर्थ मानते हैं :--
--४।११८ अंगुत्तर निकाय ६. जह मम न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । ___ न हणइ न हणावेइ य, सममणई तेण सो समणो । -दशवकालिक नियुक्ति गा० १५४ ७. (क) नत्थि य सि कोइ वेसो, पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु।
एएण होइ समणो, एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ।। तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो, समो य माणावमाणेसु ॥
--दशवकालिक नियुक्ति गा० १५५-१५६ (ख) अनुयोगद्वार १२९-१३१ (ग) सह मनसा शोभनेन, निदान-परिणाम-लक्षण-पापरहितेन च चेतसा वर्तत इति समनस : ।
--स्थानाङ्ग ४।४।३६३ अभयदेव टीका पृ० २६८ ८. श्राम्यति-तपसा खिद्यत इति कृत्वा श्रमणः ।
--सूत्रकृताङ्ग १।१६।१ शीलांकाचार्य टीका पृ० .२६३
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