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________________ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति [४५] व्यापक प्राकृतना 'कुण-(कर) अने 'जिण् ' . (जितवु ) धातुचें मूळ वैदिक 'कृ'-(कर) केटलाक धातुओ ऋि० वे० पृ० २२६-२२७ म० सं०] 'जिन्'-- (जित) धातुमां छे. वैदिक 'जेन्य' [ऋ० वे० पृ० ४६५ म० सं०] पदमा उक्त 'जिन्' धातुनी हयाती छे. [४६ ] व्यापक प्राकृतमां इकारान्त, उकारान्त नरजातिक नामोने प्रथमाना बहुवचनमां एक ‘णो' प्रत्यय पण 'णो' प्रत्यय - लागे छे. ते ‘णो' प्रत्यय प्रथमा बहुवचनना वैदिक रूप 'अत्रिण' मां उपलब्ध छे. लौकिक संस्कृतमां 'अत्तारः' अने वैदिकमां ' अत्रिणः' थाय छे. वेदभाष्यकार लखे छे के “तृजन्तस्य 'अत्तु' शब्दस्य जसः छान्दसः 'इनुड्' आगमः"-[३० वे० पृ० ११३-५ सूत्र. मेक्स० ] [४७] व्यापक प्राकृतमां केटलांक पदो विभक्ति विनानां पण चाले छे तेम वैदिक प्रक्रियामां पण प्रयोगो प्रवर्ते छे. वै० सं० व्या० प्रा० [वै० प्र० ७-१-३९] आर्दै चर्मन् (सप्तमी) बहुशत शाकियानां [ , ] लोहिते चर्मन् ( ,,) संगीति योजयेथा [ , ] परमे व्योमन् ( ,, ) ईदृश ते निमित्ता [३० वे० पृ० ४६४ म० सं०] वीळु (द्वितीया ) धरणि कंपयमान [ , ] दळ्हा (,) गय (गजानाम् ) [, ४७२] अभिजु (,) एइ (एते) J - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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