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उपसंहार
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कहीने सौराष्ट्र वगैरे माटे 'गूर्जर' शब्दने वापरे छे. तथा " गूर्जरी स्त्री" नोंधीने 'गूर्जरी' शब्दने गुजरातनी स्त्रीजाति-'गुजरातण'-माटे वापरे छे. अने तेमणे 'गुर्जरत्रा' शब्दने पण देश माटे वापरेलो छे. ___ * गूर्जर' शब्दनु मूळ गमे ते धातुमां होय परंतु हेमचंद्र ते शब्दने 'गूर्' धातुमाथी नीपजावे छे. 'गूर्' एटले ‘गति करवी'. 'आर्य' शब्दना मूळमां जेम ‘गति' अर्थवाळो 'ऋ' धातु छे तेम प्रस्तुत 'गूर्जर' शब्दमां पण 'गति' अर्थवाळो 'गूर्' धातु छे एम हेमचंद्रनो अभिप्राय छे. आपणा देशनुं नाम जे प्रजाना नाम साथे संकळायेलुं छे ते प्रजा खरेखर गतिशील ज हशे, नहीं तो क्यां ते प्रजानुं निवासस्थान अने क्यां आ आपणो देश ?
आटलुं मोटुं अंतर गतिशील प्रजा ज छेदी शके अने नवं राष्ट्रस्थान निर्मी शके. “चराति चरतो भगः" नी उक्तिने गूर्जरोए सार्थक करी छे. 'गुर्जरत्रा' शब्द तो प्राकृत 'गुजरत्ता' नो मात्र संस्कार जणाय छे. छेडाना 'त्ता' के 'अत्ता' नो विशिष्ट अर्थ समझी शकातो नथी. 'गूर्जरैः आत्ता गृहीता भूमिः गूर्जरात्ता' एम कहीने 'गुज्जरत्ता' के गूर्जरत्रा' नुं मूळ कल्पी शकाय, पण ज्यांसुधी 'गूर्जरात्ता' शब्द माटे विशिष्ट संवादी उल्लेख न मळे, त्यांसुधी ए नरी कल्पना ज कहेवाय आ तो अंतिम ‘त्ता' के 'अत्ता' नो अर्थ मेळववानी मात्र युक्ति कहेवाय. वळी, तद्धितनी प्रक्रियामां हेमचंद्र ७–२-१३३-१३४ सूत्रमा एक 'त्रा' प्रत्ययनो निर्देश करे छे अने 'देवत्रा वसेत् , मनुष्यत्रा' एवां 'त्रा' प्रत्ययवाळां उदाहरणो पण आपे छे, परंतु मारी समझ छे त्यां सुधी उक्त
* आप्टेना संस्कृत कोशमा 'गूर्जर' अने 'गुर्जर' एम बन्ने शब्दो नोंधेला छे, तेम ज साक्षरवर केशवलाल ध्रुवे अने चीमनलालभाई दलाले 'गुर्जर' शब्दने वापरेलो पण छे तेथी अहीं में ए बन्ने शब्दोनो उपयोग करेलो छे.
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