________________
गद्य ( उपाध्याय यशोविजयजीए खंभातथी लखेलो कागळ ) इहां धर्मकर्म सुखइ निवर्तइ छइ. तुम्हारा धर्मोद्यमना समाचार जणावीने परमसंतोष उपजाववा.
तथा तुम्हारो लिख्यो लेख १ प्रथम चैत्र शुदिनो लिख्यो आव्यो, समाचार प्रीछया, संतोष ऊपना. तथा प्रश्नरो उत्तर :___ साध्वी नानबाईरी अवधिज्ञानरी कपटमात्र जणाई छई. तथा खंभातमध्ये श्रावक, सूत्र वाचई छइ, x x x x x तथा गुरुशिष्य संवाद तो बुद्धिं जाणवो. ___ वडो लेख लिखावी मोकल्यो छइ, सा. गदाधर थानइ ठाऊको मोकल्यो
छई. तिणमां नय निक्षेप प्रमाणरी मणा न रही छइ. वारंवार विचारयो. ___तथा श्रीवर्धमान स्वामी क्षत्रीकुण्डग्रामे हवा. ते तो आगम-प्रमाण मध्ये अंतर्भवइ छइ. सामान्यथी आम सद्भावे तो शेषवत्-अनुमान प्रवर्तई. जे माटई अबाधित स्याद्वाद प्रवचनरूप कार्य छइ, ते आम कारण विना न संभवेई. पूर्ववदादि शब्दरो ए अर्थ छइ.
तथा न्यायाचार्य बिरुद तो भट्टाचार्यइ न्यायग्रन्थ रचना करी देखी प्रसन्न हुइ दिऊं छइ. ग्रन्थ समाप्तिं लिख्या छइ.- x x x न्यायग्रन्थ २ लक्ष कीधो छइ. x x x तथा धर्मलाभ जाणज्यो, धर्मोद्यम विशेषथी कर्यो, धर्मस्नेह वृद्धिवंत राष (ख) ज्यो. उपाध्याय श्रीयशोविजय संवत्-१७२९-द्रव्यगुणपर्याय
रास-(प्रारंभ)
राग—देशाख चोपाइ गद्य–तिहां प्रथम गुरुनई नमस्कार करीनई प्रयोजन सहित अभि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org