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________________ अढारमा सैकानुं दुखःथी विरमे जन सकल सुखथी विरमे बुध । सुखदुःख सरखा लेखवे भवना ते मुनि शुद्ध ॥ ८ ॥ हय जेम देवाणुप्पिये ! जातिवंत गुणवास । उत्पथगामी तेम न हुं सुण तस कथा विलास ॥ १० ॥ ( पृ० ५९ ) X X तथा गद्य X X मद झरता कुंजर जाणे सनिर्जर शैल । अंबर लागी अंबाडी सुरगज शुं करे मेल ॥ ७ ॥ धवल धोरी जोतरीया रथनी कीधी तैयारी । शणगार्या सांबेला धवल मंगल दिए नारी ॥ ८ ॥ गाय गीत सुहासणि पहेरी नवला वेष मद मुदित हुआ सवि गाम अने संनिवेश । केइ चढ्यारे सुखासन केइ चढ्या चकडोळ अतिचतुर विचक्षण करे घणा रंगरोळ ॥ ९ ॥ अष्ट मंगल चाले आगे वळी चाटुकार असि - कुंत - फलक- गृह नर्मकार रतिकार | तिल नांख्या न तळे आवे तेम हुआ पंथ धरणीनो कण पण न रह्यो कोइ अपंथ ॥ १० ॥ उच्छव जुए नरनारी बारी चढी चौबारी व्याकुल थइ वादित्र - शब्द सुणी सवि नारी । तूर दुग्ध जामाता कलि कज्जल सिंदूर खट होय ए वल्लभ स्त्रीने सहज सनूर ॥ ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ६२७ www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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