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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति थोडे दीवशे अरजुन आव्या रीझा धर्मराजंन जी । वैशंपायेन केहे जनमेजयेने थयू पुरण नल आक्षांन जी ॥ ३९ ॥ शांभले भणे वा लखे पुस्तक शर्व तीरथनु फल थाए जी । अष्ट मादांन जग्न तणु फल आपे वैकुंठ राए जी ॥ ४०॥ करकोटकने नल दमयंती श्रुदेवने रीतुपर्ण राए जी। ए पांचेनां नाम ले श्रुतां उठतां तेने घेरथी कलीजुग जाए जी ॥४१॥ वीरक्षेत्र वडोदरू नांमे गुरू देश गुजरात जी। कृष्णश्रुत कवी भट प्रेमानंद वाडव चोवीशा न्यात्त जी ॥ ४२ ॥ गुरूप्रतापे पदबंधन कीधु कालावाला भांषी जी। आरणीक पर्वमां मुल कथामाहे नैशधलीला भाषी जी ॥ ४३ ॥ मुहुरत्त कीधु श्रुरतमांहे थयू पुरण नंदरबार जी । कथा नलदमयंतीजीनी शारमांहे शार जी ॥ ४४ ॥ शंवत शतर बाशेठा वरषे जेठवदी दशमी मंगलवारजी ।
थै कथा पुरण वीस्तारजी........ ॥ ४५ ॥ लख्या वर्ष-शंवत १७८६ ना आषाड श्रुदी ६ मंदीवारे शंपुरण लखुं छे.
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कवि-उपाध्याय-यशोविजयजी-संवत् १७२९---जंबूस्वामिरास
शारद सार दया करो आपो वचन सुरंग । तुं तूठी मुज उपरे जाप करत उपगंग ॥ १ ॥ तर्क काव्यनो ते तदा दीधो वर अभिराम । भाषा पण करी कल्पतरु शाखा सम परिणाम ॥ २ ॥
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