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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
२०० अहीं उपयोगमां लीघेली अढारमी सदीनी चारे कृतिओमांथी निदर्शनरूपे जणावेलां साते विभक्तिवाळां रूपो, अढारमी सदीनी क्रियापदो, कृदंतो अने बीजा शब्दोने वांचवाथी ए भाषामीमांसा स्पष्ट जणाइ आवे छे के ए कृतिओमां वपरायेली गुजराती ते अद्यतन गुजराती छे. ते कृतिओना केटलाक प्रयोगोमां जूनी गुजरातीनी छांट देखाय छे खरी पण ते नगण्य जेवी छे, एथी अद्यतन गुजरातीनो आरंभ अढारमी सदीथी थयो छे एम मानवाने वा कहेवाने को बाध नथी. जूनी गुजरातीनी छांटवाळा जे थोडाक प्रयोगो छे ते आपोआप समझाय एवा छे, एटले तेने जुदा गणाववानी जरूर जणाती नथी. जे समयथी जैन अने वैदिक परंपराना गुजराती कविओनुं गुजरातीसाहित्य उपलब्ध थाय छे ते काळनी कृतिओना क्रमवार उत्तरोत्तर उदाहरणो वधारे प्रमाणमां आपतो आव्यो छु अने ते रीत छेक छेली अढारमी सदी सुधी राखेली छे. जे साक्षर बंधुओ हजु पण जैन अने जैन नहीं एवा कविओनी भाषा वच्चे भेदभाव वा भिन्नप्रवाहमूलकता समझता होय तेओ कृपा करीने बारमी सदीथी अढारमी सदी सुधीनी गुजरातीनां अहीं आपेलां ए निदर्शन-प्रयोगो ध्यानपूर्वक जरूर तपासे एवी तेमने मारी नम्र विनंती छे; अने ए भ्रम भांगवा सारु ज निदर्शनो वधारे आपवानी उक्त पद्धति अहीं स्वीकारी छे अने साथे साथे प्रत्येक भाषणना अंतिम पानांओमां में बारमी सदीथी मांडीने अढारमी सदी सुधीना गुजराती पद्य अने गद्य साहित्यना नमूनाओ पण आप्या छे. ते नमूनाओनुं सळंग निरीक्षण पण उक्त भ्रम भांगवाने पूरतुं छे. सदीवार ऋण कविओ तो लीवेला ज छे.
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अहीं सुधी उक्त सदीओना साहित्यनुं निरीक्षण करेलुं छे. हवे ए निरीक्षणनो निष्कर्ष बताववा अंतिम वचनरूप उपसंहार करीने आ व्याख्यान पूरां थशे.
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