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आव्यो
वशा
धरू
FE EFFEE EFFERE
गयो
थयू
६०६ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति वर्तमान
भूत
भविष्य रत्नेश्वर- साधे पूच्या ढांक्यां होनार सांभलज्यो दीसे बोध्यां आव्यां कहे लवे छे पाम्यो अतिशोभ्यो प्रमाणे आवे बेठो विखाणे वाधे
आव्या प्रेमानंद--- दीउ
थ्यू हशे नीशरे
भागशे करू
आव्यो पांम्यो आवशे आदरू जांउ रहो कहु पांमु
धराव्यू वदे आपे
गयो चांपे
पड्यो छर बोल्या आव्यू केहे छे भोगव्यू होए जी कोहो
कृदंतो १९७ लक्ष्मीरत्न-आवता, करतां, खातां, जातां, रडतां, चढतै, ए कविओना सांभलतां, कहंदा. कृदंतप्रयोगो
रत्नेश्वर-विचारी, सुणीने, थेने, मेहली, करंता, लै, फरंता, जोवा, दीसंतां, निरखी, देखी, राखीने, रहीने, करतो, हरवा, करवा.
परणो
बेठा आप्यु
नथी
मुको
आधे लगाडे
छांडी
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