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________________ सोळमा अने सत्तरमा सेकानुं पद्य तथा गद्य घर प्रकार अनेक अटाली युक्त्य मनोहर दीसि । अनेक द्वार वीराजीत रचना ये जोतां मन हींसि ॥ ३८ ॥ हेमनगरनो तारकाक्ष ते यै रह्यो अधीकारी । रूप्यनगर कमलाक्ष भोगवि माहाप्राक्रम बलधारी ॥ ३९ ॥ लोहमि नगरतणो अधीपति ते वीद्युन्माली कहावि । त्रय भुवनमां माहाबलीओ येहनी यमली को नावि ॥ ४० ॥ एणि प्रकारि त्रये बांधव राज्य करि अवश्यमेव । मनमां ये ईछा करि ते त्यांहां पांमि ततषेव ॥ ४१ ॥ तारकाक्षनो पूत्र हरी तेणि माहां उग्रतप कीधो । वीरंची प्रगट हवा वरकारणि सत्य बोल करि दीधो ॥ ४२ ॥ हरी कहि ब्रह्माजी मुझनि एक वर करो पसाय । स्वामी अमारा नगरवीषि एक अमृतवापी थाय ॥ ४३ ॥ तेणि समि ब्रह्माजी अंतर ध्यान हवा वर आपी । हेां मात्रमांहां नीमी एक अमृतकेरी वापी ॥ ४४ ॥ पछि उन्मत्त हवा ते दानव माहाबलीआ ये होय । त्रण्य लोकमां देवरुषेश्वर दुषी कर्या श्रव कोय || ४५ ॥ तेणि समि जई अमर कहि श्रीब्रह्मानि शीर नामी । त्रैलोक्यमां तरकसुत आगलि क्यम रहीअि अह्नो स्वांमी ॥ ४६ ॥ ब्रह्माजी वलता इम बोल्या अमर तहमो अवीधारो । ये पापी तमनि दुषदायक ते तां द्वेषी अमारो ॥ ४७ ॥ जाओ शर्ण्य माहादेवतणि त्यांहां किहिजो नीज वृत्तांत | ईश वीना कोणि पापीनो आणी न सकि अंत ॥ ४८ ॥ Jain Education International ५९५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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