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________________ ४५४ गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति ऊपरनां उदाहरणो द्वारा एम जणाय छे के पन्नरमा सैकानी गुजरातीमां प्रथमामां अने द्वितीयामां कोई प्रत्यय न हतो, मूळ नाम ज वपरातुं, अथवा — उ' प्रत्यय वपरातो. त्रीजी विभक्तिमां 'ई' प्रत्यय हतो अथवा त्रीजी विभक्तिमा मूळ नाम एम ने एम प्रत्यय विना पण वपरातुं. चोथीमां, चालु 'ने' ने बदले 'नई' प्रत्यय वपरातो. पांचमीमां तउ, हूंतउ, थउ, थकउ प्रत्ययो हता. छठ्ठीमां तणउ, रहई, किहिं अने सातमीमां 'इ' प्रत्यय प्रचलित हतो. आ सिवाय ते समयनुं बीजं गद्य-पद्य साहित्य अवलोकतां बीजा पण केटलाक प्रत्ययोनी माहिती मळे छे. वि० सं० १४११ ना तरुणप्रभ, १४५७ ना सोमसुंदर, १४७१ ना लक्ष्मीधर बेराम अने १५०० ना हेमहंसनां गद्यो ऊपरथी अने १४१७ ना असाइत तथा १४८८ ना भीमकविना पद्य-प्रबंधद्वारा नामने लगता प्रत्ययो विशे जे हकीकत मळे छे ते आ प्रमाणे छे :१५६-तरुणप्रभ-(सं० १४११) १-कथानकु, जनपदु, विजयवती, हरिदत्तु, संतुष्ट, " सौधर्मेन्द्र, दुक्खपूर्वक, सरीरदुक्ख. २-चैत्य, संशयु, वांछितु, धर्मदेशना, जीव. ३-तिणि, नामि, प्रभावि, कर्मिहिं, राजेन्द्रि, अनेरई, किणिहिं, शिष्यहं, वांछकहं, ईंहंवडइ, मूल्यवडई. __ ५-दूषितत्व–इतउ, भाव-इतउ, पुरु-हूंतउ, मुख-हूंतउं, जोग-इतउ, दीप-हूंती, दहन हूंता. ४-६-गुण-रहई, महाराज, हारनउ, महात्मातणा, स्नेहतणउ, तीहंरहई, तेहरहइ, तेहनउं, घरतणी, भुंइनइ, लोकहंतणा, धर्मनंदनी, सिद्धांतनउं, बिडं, श्रेष्ठिहिंतणउ, मूहीं जि रहई, तिहीं जि रहइं. तरुणप्रभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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