________________
३८८
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति
पदम भवणि देहलिहि देउ छुडि पुडि आरोविउ । संघाहिवि हरिसेण तम दिसि पच्छलु जोइउ ॥ ८ ॥ ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमि कुमारो । कुसुमवुट्टि मिल्देवि देवि किउ जइजइकारो ॥ ९ ॥ वसाही पुन्निमह पुन्नवतिण जिणु थप्पिउ । पच्छिमदिसि निम्मविउ भवणु भवदुहतरु कप्पिउ ॥ १० ॥ न्हवणविलेवतणीय छ भवियण जण पूरिय । संवाहिव सिरि अजितु रतनु नियदेसि पराइय ॥ ११ ॥ ( तृतीय कडव ) गिरि गस्यासिहरि चडेवि अंबजंबाहिं बंबालिउं ए । संमिणी ए अंबिकदेवि देउलु दीठु रम्माउलं ए ॥ १ ॥ चज्जइ ए ताल कंसाल वज्जइ मदल गुहिरसर | रंगिहिं नच्चइ बाल पेखिवि अंबिक मुहकमलु ॥२॥ सुभकरु ए ठविउ उच्छंगि विभकरो नंदणु पासिक ए । सोहइ ए ऊजिलसिंगि सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥ ३ ॥ दाव ए दुक्खहं भंगु पूरइ ए वंछिउ भवियजण | रक्ख ए चउवि संघु सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥ ४ ॥ दस दिसि ए नेमकुमारि आरोही अबलोइउं ए । दीजई ए तहि गिरनारि गयणंगणु अवलोणसिहरो ॥ ५ ॥ पहिलइ ए सांबकुमार बीज सिहरि पज्जून पुण । पणमई ए पामई पारु भवियण भीसण भवभमण ॥ ६ ॥ ठाम ठामि रयणसोवन्न बिंब जिणेसर तहिं ठविय । पणमइ ए ते नर धन जे न कलिकालि मलमयलिया ए ॥ ७ ॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org