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गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति 'हो' ते 'भू' धातुनुं प्राकृत अंग छे अने 'स्सामि' तथा 'सं' ते भविष्यकाळना प्रथम पुरुषना एकवचनना प्रत्ययो छे (८-३-१६९) संस्कृतमां वपरातो 'स्यामि' अने आ प्राकृत ‘स्सामि' तद्दन मळता छे. पालिभाषामां पण एवो ज ‘स्सामि' अने ‘स्सं' प्रत्यय छे. 'होस्सामि' अने 'होस्सं' मां आवेला 'स' - 'ह' उच्चारण तो हेमचंद्रे नोंघेलं छ (८-३-१६७ ). उक्त ‘होक्खामि' अने ‘होक्ख' रूपमां ‘स्सामि' अने ‘स्सं' ना 'स' नुं 'ख' उच्चारण थयेलुं छे. 'अस्मि' वगैरे रूपोमां पालि अने प्राकृत बन्ने भाषामा 'स' - 'ह' उच्चारण सुप्रतीत छे. तेम ज खोरदेह-अवेस्तानी भाषामां तो 'स' नुं 'ह' उच्चारण विशेष प्रचलित पण छेः हन्ती (सन्ति) पृ० ५, हस्तेम् (सूक्तम् ) पृ० ९. वोहुँ (वसु) पृ०९-खोरदेह-अवेस्ता। हार्ताम्-(सताम् ) पृ० १२, हुमतांचा ( सुमत ) पृ० २८, हाँ (सा) पृ० ६५, हर्धे (सह) पृ० ७९,९०, हप्त-( सप्त-) पृ० १५४, हथा (सत्रा) पृ० १८०, अहुरह्या (असुरस्य) पृ० १८१, ह्वो"(स्वः) पृ० १८४, (-खोरदेह-अ०) वगेरे अनेक प्रयोगोमां 'स' नुं 'ह' उच्चारण विद्यमान छे. ए ज रीते खोरदेहअवेस्तामां 'स' ने बदले 'ख' नुं उच्चारण पण प्रचलित छे. ख्यात्(स्यात् ) पृ० १७४, १८४, ख्यामों ( स्याम ) पृ० १८४, नेमख्यामही-(नमिष्यामहे ) पृ० १८३ वगैरे. जेम अवेस्तानी भाषामां ‘स' नुं 'ख' उच्चारण उपलब्ध छे तेम प्राचीन प्राकृतमां पण ते जरूर संभवी शके अने तेथी ज उक्त उत्तराध्ययन सूत्रमा 'होस्सामि' नुं ' होक्खामि' अने 'होस्सं' - ‘होक्खं' एवां रूपो मळे छे. संभव छे के 'स' नुं 'ह' मा परिवर्तन थया पछी ते 'ह' 'ख' रूपे उच्चारातो होय. 'ह' अने 'ख' मां कंठस्थाननी समानता छे अने प्राकृतमा 'ख' नु परिवर्तन 'ह' मां थाय पण छे. जेम 'ख' 'ह' रूपे परिणमे छे तेम
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