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________________ बारमो अने तेरमो सैको २५५ आ 'तण' नी उत्पत्ति विशे एक मत सुनिश्चित नथी. केटलाक विद्वानो षष्ठीविभक्तिवाळा आत्मनः–अत्तनो-अत्तणो षष्ठीसूचक 'तण' नी व्युत्प रूपना अंगभूत 'तण' ऊपरथी उक्त 'तण' ने त्तिचर्चा नीपजावे छे. त्यारे केटलाक विद्वानो तद्धितना 'पुरातन' वगैरे शब्दोमां वपरायेला 'तन' प्रत्यय ऊपरथी उक्त 'तण' नी व्युत्पत्ति बतावे छे. संबंध अर्थने सूचववा माटे कीय (परकीय, जनकीय, राजकीय ६-३-३१ हे०), इक ( वार्षिक, मासिक ६-३-८० हे० ), ण (पुराण ६-३-८६ हे० ) अने तन (पूर्वाण्हेतन, अपराण्हेतन, सायंतन, चिरंतन, अद्यतन ६-३-८७,८८ हे०) वगैरे अनेक प्रत्ययो वपराय छे. 'तन' वगैरे प्रत्ययो लाग्या पछी तैयार थयेलं अंग विशेषण रूप बने छे, अने तेथी ते विशेष्यनी पेठे लिंग अने विभक्ति-वचनोने धारण करे छः रामतणो भाई. रामतणी वात. रामतणु कुल. मारा विचार मुजब 'पुरातन' वगेरेमां वर्तता 'तन' जपरथी 'तण' लाववामां आवे तो विशेष्य-विशेषणभावनी घटना बराबर थशे. जो के ए 'तन' संस्कृतमां सार्वत्रिक प्रत्यय नथी तो पण लोकभाषामां एने सार्वत्रिक थयेलो मानी शकाय एम छे. एवां तो बीजां घणां उदाहरणो छे के जे प्राचीन समयमां सार्वत्रिक न होय अने पछीथी सार्वत्रिक थई गयां होय : __सप्तमीनो 'स्मिन् ' प्रत्यय संस्कृत व्याकरणनी दृष्टिए सर्वित्रिक नथी पण लोकभाषामां तो ए सर्वत्र व्यापक जेवो छे अने एम छे तेथी ज पालिभाषामां अने आर्षप्राकृतमा 'बुद्धस्मिं,' 'बुद्धम्हि' (पा० ) 'लोगंसि,' 'बंभचेरंसि' ( आ० ) वगैरे प्रयोगो उपलब्ध छे. २७८ संस्कृत व्याकरणमा सप्तमीना एकवचनो 'स्मिन् ' प्रत्यय मात्र सर्वादि 'सर्वनामो' पूरतो छ----" ढसि-ड्योः स्मात्-स्मिनौ'-(पाणि ० ७ । १।१५। काशिकावृत्ति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004874
Book TitleGujarati Bhashani Utkranti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMumbai University
Publication Year1943
Total Pages706
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Grammar
File Size22 MB
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