________________
१७८
गुजराती भाषानी उत्क्रान्ति संस्कृत बहेन संपत्तिशाली छे, तेनां आभूषणो पण तेवां ज महामूल्य छे. परंतु ते बहेन लोकव्यापक नथी थई त्यारे प्राकृत अने अपभ्रंश ए बन्ने बहेनो साधारण छे. तेमनां आभूषणो साधारण छे परंतु ते बन्ने बहेनो लोकव्यापक थयेली छे. लोकमां संपत्तिशालिनुं प्राधान्य अने साधारण जनन अप्राधान्य प्रवर्ते छे, परंतु भाषामां तेम नथी. भाषामां तो संपत्तिशाली भाषा साधारण भाषानो पण आश्रय ले छे अने साधारण भाषा संपत्तिशाली भाषानो पण शृंगार पहेरे छे. गुजरातीनी माता आपणी गुजराती भाषानी मा उक्त अपभ्रंश उक्त अपभ्रंश.
I भाषा छे अने व्यापक प्राकृत तेनी मोटी माशी छे, व्यापक प्राकृत मोटी माशी अने अने संस्कृत तेनी नानी माशी छे. वैदिकयुगर्नु संस्कृत नानी माशी. आदिमप्राकृत. ए बधीनी माता के अने गुजरातीनी
गुजरातीनी मातामही मातामही छे. मातामहीनो संपर्क परंपराए छता वैदिकयुगनुं गुजरातीए पोतानी मातामहीनो वारसो जाळवी आदिम प्राकृत
राख्यो छे. 'आ' के 'ए' अर्थे वपरातो प्रचलित गुजरातीनो 'ई' शब्द,
i इवें' अर्थे वपरातुं चालु गुजरातीनुं 'न' मातामहीनो अव्यय, 'मोटाइ' वगैरेमा आवतो भाववाचक
वारसो 'आई' प्रत्यय अने 'पांच वरसनो' वगैरे प्रयोगोमां आवतो 'न' प्रत्यय-ए बधुं ए मातामहीना पारंपरिक धावणर्नु परिणाम छे.
१७७ काठियावाडमा 'ई' शब्दनो व्यवहार सुप्रतीत छेः 'ई आव्यो' 'ई नथी' 'ई छे' वगेरे.
१७८ 'चांदो न होय' 'कर्ण न होय ' 'जम न होय' वगेरे वाक्योमा 'न' नो 'इव' अर्थ जाणीतो छे.
१७९ जुओ पृ० ६८-६९ [ ३७-३८]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org