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आमुख
यातु-जातु
यातुधान-जातुधान , 'ह'नो 'घ'
[३८] ह-घ ।
अंहि-अछि
घस्र-हस्र 'ष्ट्र' नो 'ढ' तथा [३९] ष्ट्र-ढ, 'र' लोप र लोप
दंष्टिका-द्राढिका–दाढिका 'श्च' नो 'च्छ'
[४०] श्च-च्छ
पश्च-पुच्छ [ 'पुच्छ' वेदमां पण मळे छे ]
[४१] अनुस्वारलोप अनुस्वारलोप
अम्बा-अब्बा [४२ ] वचला स्वरनो लोप अने वचला
स्वरसहित व्यञ्जननो लोप
रसना-रस्ना वचला स्वरनो
वासर-वास्त्र अने सस्वर व्यंजननो लोप
भगिनी-भग्नी वहनी-वेणी (प्रवाह-रघुवंश) उदुम्बर-उम्बुरक-उम्बर प्रदत्त-प्रत्त आदत्त-आत्त
सुदत्त-सुत्त ५७ “ प्रासादजालैर्जलवेणिरम्यां रेवां यदि प्रेक्षितुमस्ति कामः-"रघुवंश स०
६, श्लो० ४३) " जलानां वेण्या प्रवाहेण" - " ओघ: प्रवाहो वेणी च इति हलायुधः"-टीका
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