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आमुख
[३] संस्कृत साहित्यमां 'क्षुर' अने ' खुर' बन्ने शब्दो मळे छे. 'क्ष'नो 'ख' अने
'क्षुर' नो अर्थ छे 'खरी-पशुना पगनी खरी'.
न क्षुर' ना 'क्ष' नुं 'ख' उच्चारण ए प्राकृतनी र असरनुं परिणाम छे. रघुवंशनों प्रथम अने द्वितीय सर्गना श्लो० ८५ तथा २जामां महाकवि कालिदासे 'खुर' शब्दनो उपयोग करेलो छे.
[४ ] ऋग्वेद मंडल १० सूक्त १५५ ना पहेला मंत्रमा 'विकट' __ 'त' नोट'
, शब्दनो प्रयोग छे. भाष्यकार तेनो अर्थ 'विकृत
___ अंग' वा 'विकृत गमन' बतावे छे. संस्कृत साहित्यमां — विकार प्राप्त' अर्थ माटे 'विकृत' शब्द सुप्रतीत छे. पालिभाषाना केटलाक शब्दोमां 'त' नुं 'ट' उच्चारण प्रवर्ते छे. एनी असरने लीधे 'विकृत' नुं 'विकट' उच्चारण थयुं छे. अने ए रीते आवेलो ते 'विकट' शब्द ठेठ ऋग्वेद सुधी पहोंचेलो छे. [५] 'रायण' ना झाड अर्थनो सूचक 'पियाल' अने 'प्रियाल'
_शब्द छे. 'प्रियाल' ना 'र' नो लोप थई 'पियाल' 'र' नो लोप
" शब्द नीपज्यो छे. अने आ रीते संयुक्त 'र'नो लोप थवानी पद्धति प्राकृतमा ज छे. कोशकारो ए बन्ने शब्दोने संस्कृत समझीने नोंधे छे. “ राजादनः पियाल: स्यात्" ( हैम० कां० ४, श्लो०२०८) "राजादनं प्रियालः स्यात् " (अमर० का २, श्लो० ३५ वनौषधीवर्ग ). कालिदास कुमारसम्भवमां ‘पियाल' शब्दनो उपयोग पण कर्यो छे. “ मृगाः पियालद्रुममञ्जरीणाम्"-(स० ३, श्लो० ३१) __ ५५ " रजःकणैः खुरोद्भुतैः स्पृशद्भिर्गात्रमन्तिकात् ।”
“ तस्याः खुरन्यासपवित्रपांसु” इत्यादि ।
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