________________
.
२५
वैदिक धर्म का सार, सूत्र रूप में ईशोपनिषद में और कुछ विस्तार से भगवद्गीता में मिल जाता है। ख्रिस्ती धर्म का सार, ईसा का गिरि-प्रवचन मशहूर है । बौद्ध धर्म का सार बौद्धों का ही चुना हुआ धम्मपद है। सीखों का पूरा धर्म-विचार ‘जपुजी' में आ जाता है । जैन धर्म का सार थोडे में देनेवाली किताब की बहुत जरूरत थी, वह, मेरा ख्याल है ‘महावीर वाणी ने अच्छी तरह पूरी की है।
इस पुस्तक में सिर्फ ३१४ वचन दिये हैं, तो यह एक छोटीसी चीज हो जाती है। अध्ययन करनेवाले पर शब्द का बहुत ज्यादा बोझ नहीं पडता, और जीवन के लिये पाथेय पूरा मिल जाता है। परिभाषा का जंगल कुल टाला गया है। सामान्य पाठक को पचास एक नये शब्द इस में मिलेंगे, जो उसको भयावने नहीं होंगे बल्कि सुहावने होंगे। १९ वे सूत्र में वे बहुत सारे दाखिल हैं । यह सूत्र यहां नहीं दिया होता तो पाठकों को अपरिचित कोई शब्द नहीं मिलता । लेकिन फिर पुस्तक का वजन भी कम होता । उस सूत्र के बिना जैन-विचार के दर्शन से ही पाठक वंचित रह जाता।
समन्वय आश्रम के लिये इसका बहुत उपयोग होगा। लेकिन समन्वय आश्रम सिर्फ बुद्ध-गया में ही नहीं चलाना है। सारे देशभर में अध्ययन के और सेया कार्य के जितने स्थान हैं, उन सब को हमें समन्वय आश्रम बनाना है। उसके लिए यह एक अनमोल देन होगी। दलसिंगराय, बिहार
विनोबा के प्रणाम १०-८-१९५४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org