________________
( २४२ )
रत्नपरीक्षा कूवाओ तस्स कए पारोलं उच्छलिवि धावए पच्छा । वाहुडइ दह कमाउ पुणोवि निवडेइ तत्थेव ॥७॥ जं रहइ नीय ठाणे जत्थ व कत्थेव खड्डखड्डीहि । तत्थाओ गहइ सा तिय उप्पत्ती पारयस्स समा ॥७९॥
हिंगुलं जहा--
एगमण पारयंमि गंधयचुण्णं खविज्ज दह सेरें । दूराउ आसन्नं मंदग्गी कीरए मिस्सं ॥८॥ तं कुट्टेवि खविज्जइ मणसिल हरियाल सेरपापायं । कच्चकरावि खिविउ दहिज्जइ खोरचुण्णेण ॥८॥ दाउं मट्टिय लेवं तिन्नि अहोरत्ति वन्हि जालिज्जा । जाव सुगंधं जायइ सेर छ जो लीस हिंगुलियं ॥८॥
सिंदूरं जहा
नागमणेगं गालिय वंसयरक्खं ददद्धसेरजुयं । काऊण फुट्टियव्वं तं छाणिवि नीरि घोलिज्जा ॥८॥ नित्थारिऊण नीरं जं हिठे रहइ तं दलं अमलं । तत्तो वि य बहु वडिया कायव्या सोसियव्या य ॥८४॥ पच्छा घणेण कुट्टिय हंखेण य छाणिऊण तं चण्णं । भट्ठि मज्झे ठविलं जालिज्जइ वण्हिदिवसतिगं ॥४५॥ जह जह लग्गइ तावं तह तह रंगं चडेइ निब्भंतं । सेडूणं सिंदूरं तत्तवियं होइ पुण नागं ॥८६॥ इत्तो भणामि संपइ कुधाओ मज्झे सुधाओ जं होइ । सयतोलावगंतरि वरकणयं जव चउत्तीस ॥८७॥ सोसयतोलासय गे बारसजवरुप्पयं हवइ नूणं । पच्छा विसोहियं तं निकणं नहु होइ कइयावि ॥४८॥ दाहिणवत्तं संखं रुद्दक्खं अक्खं सालिगामं च ।। कप्पूर अगरु चंदण कत्थूरिय कुंकुमाईणि ॥८९।। अन्नेवि य जे केवि य सिंधवहिंगाइ चउवलाईणि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org