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सत्तरसमं सयं कुंजर संजय सेलेसितै किरिये ईसाणे पुढेवि दंगे वा। एगिदिय नाग सुवन्न विजु वायु-गि सत्तरसे ॥
पढमो उद्देसो. १.प्र. रायगिहे जाव-एवं वयासी-उदायी णं भंते! हत्थिराया कोहिंतो अणंतरं उच्चट्टित्ता उदायिहस्थिरायत्ताए उयवन्ने ? [उ०] गोयमा! असुरकुमारेहितो देवेहितो अणंतरं उच्चट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने ।
२. [प्र०] उदायी णं भंते! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजिहिति ? [उ०] गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसं सागरोवमद्वितीयंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति ।
३. [प्र०] से णं भंते ! तओहिंतो अणंतरं उच्चट्टित्ता कहिं गच्छिहिति, कहिं उववजिहिति ? [उ०] गोयमा! महाविदेहे चासे सिज्झिहिति, जाव-अंतं काहिति ।
४. [प्र०] भूयाणंदे णं भंते ! हत्थिराया कओहितो अणतरं उष्वट्टित्ता भूयाणंदे हत्थिरायत्ताए ० १ [३०] एवं जहेव उदायी, जाव-अंतं काहिति ।
सत्तरमुं शतक. उद्देशक संग्रह-१ कुंजर-कोणिकना प्रधान हस्ती संबन्धे प्रथम उद्देशक, २ संयतादि संबन्धे बीजो उद्देशक, ३ शैलेशी प्राप्त अनगार संबन्धे त्रीजो उद्देशक, ४ क्रिया-कर्म संबन्धे चोथो उद्देशक, ५ ईशानेन्द्रनी सुधर्मा सभा संबन्धे पांचमो उद्देशक, ६-७ पृथिवीकायिक संबन्धे छट्ठो अने सातमो उद्देशक, ८-९ अप्कायिक संबन्धे आठमो अने नवमो उद्देशक, १०-११ वायुकायिक संबन्धे दशमो अने अगीयारमो उद्देशक, १२ एकेन्द्रिय जीव संबन्धे बारमो उद्देशक, १३-१७ नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार अने अग्निकुमार संबन्धे अनुक्रमे तेरथी आरंभी सत्तर उद्देशको-ए प्रमाणे सत्तरमा शतकमा सत्तर उद्देशको कहेवामां आवशे.
प्रथम उद्देशक. १. [प्र०] राजगृह नगरमा भगवान् गौतम यावत्-आ प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! उदायी नामे प्रधान हस्ती कई गतिमांथी मरण उदायी हस्ती कई
गतिमाथी आवी - पामी तुरत अहीं उदायी नामे प्रधान हस्तीपणे उत्पन्न थयो छे ! [उ० ] हे गौतम ! ते असुरकुमार देव थकी मरण पामी तुरत अहीं पन्न भयो । उदायी नामे प्रधान हस्तीपणे उत्पन्न थयो छे. २.प्र०] है भगवन् ! आ उदायी नामे हस्ती मरणसमये मरी क्यां जशे, क्या उत्पन्न थशे ! उ० हे गौतम ! आ रत्नप्रभा उदायी मरीने क्या
जशे। पृथिवीने विषे एक सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थितिवाळा नरकावासमा नैरयिकपणे उत्पन्न थशे. . ३. [४०] हे भगवन् ! ते (उदायी हस्ती ) त्यांथी मरण पामी तुरत क्या जशे, क्या उत्पन्न थशे ! [उ०] हे गौतम ! महाविदेह त्यांची मरण पामी क्षेत्रमा उत्पन्न यई सिद्ध थशे, सर्व दुःखोनो अन्त करशे. ४. [प्र०] हे भगवन् ! भूतानंद नामे प्रधान हस्ती कई गतिमांथी मरण पामी तुरत अहिं भूतानंद नामे हस्तीपणे उत्पन्न थयो . भूतानंद यांची
आल्यो छे भने मरीछै! [उ०] जेम उदायी नामे हस्तीनी वक्तव्यता कही तेम भूतानंदनी पण वक्तव्यता अहिं जाणवी. यावत्-सर्व दुःखोनो अन्त करशे. ने क्या ज
क्या नशे!
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