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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १६.-उद्देशक २. ग्गहे, ३ गाहावइउग्गहे, ४ सागारियउग्गहे, ५ साहम्मियउग्गहे । जे इमे भंते ! अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरति एएसि णं महं उग्गहं अणुजाणामीति कट्ट समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव दिवं जाणविमाणं दुरूति. दुरूहित्ता जामेव दिसं पाउम्भूए तामेव दिसं पडिगए।
५. [प्र०] 'भंते'! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-जणं भंते ! सके देविंदे देवराया तुझे णं एवं वदइ, सञ्चे णं एसमटे' ? [उ०] हंता सचे।
१. [प्र०] सके णं भंते ! देविदे देवराया किं सम्मावादी, मिच्छावादी ? [उ०] गोयमा! सम्मावादी, नो मिच्छावादी।
७. [प्र०] सके णं भंते ! देविंदे देवराया किं सञ्चं भासं भासति, मोसं भासं भासति, सच्चामोसं भासं भासति, असचामोसं भासं भासति ? [उ.] गोयमा ! सच्चं पि भासं भासति, जाव-असचामोसं पि भासं भासति ।
८.[३०] सकेणं भंते! देविदे देवराया कि सावजं भासं भासति, अणवजं भासं भासति [उ.] गोयमा! सावज पि भासं भासति, अणवजं पि भासं भासति । [प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सावजं पि जाव-अणवजं पि भावं भासति? [उ०] गोयमा! जाहे णं सक्के देविंद देवराया सुहुमकायं अणिजूहित्ता णं भासं भासति ताहे गं सक्के देविंदे देवराया सावजं भासं भासति, जाहे णं सक्के देविदे देवराया सुहुमकायं निहित्ता णं भासं मासति ताहेणं सके देविंदे देवराया अणवजं भासं भासति, से तेणटेणं जाव-भासति।
९. [प्र०] सक्के गं भंते ! देविंदे देवराया किं भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए, सम्मदिट्ठीए-एवं जहा मोउद्देसए सणंकु. मारो, जाव-नो अचरिमे।
१०. [प्र०] जीवाणं भंते ! किं चेयकडा कम्मा कजंति, अचेयकडा कम्मा कजंति ? [उ०] गोयमा ! जीवाणं चेयकहा कम्मा कजंति, नो अचेयकडा कम्मा कजंति । [प्र०] से केण?णं भंते ! एवं पुचइ-जाव-'कजंति' ? [उ०] गोयमा !
छे तेओने हुँ अवग्रहनी अनुज्ञा आपुं छु. एम कही ते शक श्रमण भगवंत महावीरने वादी नमी तेज दिव्य विमान उपर बेसी ज्याथी आव्यो हतो त्या चाल्यो गयो.
५. [प्र०] "भगवन्' ! एम कही भगवंत गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदी, नमी आ प्रमाणे बोल्या के-हे भगवन् ! शक देवेन्द्र देवराजे जे आपने पूर्व प्रमाणे [अवग्रह संबंधी ] कर्वा ते अर्थ सत्य छे ! [उ०] हा गौतम ! ए अर्थ सत्य छे..
६. [प्र०] हे भगवन् ! शक्र देवेंद्र देवराज शुं सत्यवादी छे के मिथ्यावादी छे! [उ०] हे गौतम! ते सत्यवादी छे पण
शकेन्द्र सत्ववादी के
निष्यावादी
मिथ्यावादी नथी.
शंकेन्द्र केवी भाषा ७. [प्र०] हे भगवन् ! शक्र देवेन्द्र देवराज सत्यभाषा बोले छे, मृषा भाषा बोले छे, सत्यमृषा भाषा बोले छे के असल्यामृषा
___ भाषा बोले छे! [उ०] हे गौतम ! ते सत्य भाषा बोले छे, यावत्-असत्यामृषा भाषा पण बोले छे.
शकेन्द्र सावध ८. प्र०] हे भगवन् । शक देवेन्द्र देवराज सावध (पापयुक्त) भाषा बोले के निरवद्य (पापरहित) भाषा बोले ! [उ. हे गौतम! भापा बोहे के निरव
ते सावध अने निरवद्य बन्ने भाषा बोले. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं शुं कारण के शक सावध अने निरवद्य ए बन्ने भाषा बोले ! [उ०] सावध अने निरवय हे गौतम! शक देवेंद्र देवराज ज्यारे सूक्ष्म काय-हस्त अथवा वस्त्र वडे मुख ढक्या विना बोले त्यारे ते *सावध भाषा बोले छे अने मुख
बालवा ढांकीने बोले त्यारे ते निरवध भाषा बोले छे, माटे ते हेतुथी ते शक सावद्य अने निरवद्य बन्ने भाषा बोले छे. कारण. शु शकेन्द्र भव- ९. [प्र०] हे भगवन् ! ते शक देवेन्द्र देवराज भवसिद्धिक छे, अभवसिद्धिक छे, सम्यग्दृष्टि छे, [के मिथ्यादृष्टि छे !] सिद्धिक के वगेरे
[उ०] जेम त्रिीजा शतकना प्रथम उद्देशकमां सनत्कुमार माटे कयुं छे तेम अहिं पण जाणवू. अने ते यावत्,-'अचरम नथी' ए पाठ सुधी कहे.
प्रश्न.
कमों चैतन्यकृत के बचैतन्य कृत।
१०. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोना कर्मो चैतन्यकृत होय छे के अचैतन्यकृत होय छे ! [उ०] हे गौतम ! जीवोना कर्मो चैतन्य
८ * हस्तादिकथी मुख ढांकीने बोलनार निरवद्य भाषा बोले छे, कारण के तेनो वायुकायिक जीवने बचाववानो प्रयत्न होवाथी ते सावधानतापूर्वक यो छे. उघाडे मुखे बोलनार सायद्य भाषा बोले छे, केमके तेनो जीवसंरक्षणनो यन्न नहि होवाथी ते असावधानतापूर्वक बोले छे.-टीका.
भग• खं. २ श.३.१ पृ.३४.
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