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विषयानुक्रम.
शतक १६ उद्देशक १ पृ. १-४. हथोडावती एरण उपर घा करता वायुकाय उत्पन्न थाय अने तेनुं बीजा पदार्थना स्पर्शथी मरण थाय? हा थाय. पृ.१-वायुकायर्नु शरीरसहित के शरीररहित भवान्तर गमन थाय!-सगढीमा अनिकाय केटला काळ सुधी रहे !-सांडसावती लोढुं उंचुं नीचुं करनार पुरुषने क्रियाओ.लोढाने तपावी एरण पर मूकनारने क्रियाओ.-अधिकरणी अने अधिकरण.-जीवने अधिकरणी अने अधिकरण कहेवाचं कारण, पृ.२ रयिकादि दंडकने आश्रयी अधिकरणी अने भधिकरण,-जीव साधिकरणी के निरधिकरणी?-आत्माधिकरणी, पराधिकरणी के उभयाधिकरणी? जीवोने अधिकरण आत्मप्रयोग निर्वर्तित, परप्रयोग निर्वर्तित के तदुभयप्रयोग निर्वर्तित होय ?- अविरतिने आश्रयी अधिकरण.-शरीरना प्रकार.-इन्द्रियोना प्रकार.योगना प्रकार. पृ०३-ओदारिक शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी के अधिकरण होय?-आहारक शरीरने बांधतो जीव अधिकरणी के अधिकरण होय?-इन्द्रिय तथा मनोयोगने बांधतो जीव अधिकरणी के अधिकरण होय? पृ. ४.
शतक १६ उद्देशक २ पृ. ५-७. जरा अने शोक.-पृथिकायिकने जरा होय के शोक होय ?-शोक नहि होवानुं कारण.-शक्रनुं वर्णन अने तेनुं भगवंत पासे आवयु.-अवप्रहसंवन्धे प्रश्न अने शझर्नु खस्थानगमन. पृ. ५-शकेन्द्र सत्यवादी के मिथ्यावादी ?-शक सावध भाषा बोले के निरवद्य भाषा बोले। तेनु कारण!-शक भवसिद्धिक के अभवसिद्धिक होय वगेरे प्रश्न.-कर्मों चैतन्यकृत छे के अचैतन्यकृत ? पृ. -तेना कारणो.
शतक १६ उद्देशक ३ पृ. ७-९. फर्मप्रकृति.-ज्ञानावरणने वेदतो जीव केटली कर्मप्रकृतिओने वेदे ! पृ. ७-उल्लकवीर नगर.-काउस्सग्गमा रहेला मुनिना अर्श कापनार वैष भने मुनिने क्रिया.
शतक १६ उद्देशक ४ पृ०.९-१०. नित्यभोजी श्रमण जेटलं कर्म खपावे तेटलं कर्म नैरयिको सो वरसे खपावे ! ना. पृ. ९. चतुर्थ भक्कादि करनार मुनि जेटलं कर्म खपावे तेटलं फर्म हजार के लाख वरसे नैरयिक खपावे ? ना.-श्रमणने अधिक कर्म क्षय थवा- कारण, पृ. १०.
शतक १६ उद्देशक ५ पृ० ११-१५. उल्लुकतीर नगर.-एक जंबूक चैत्य.-देव बाय पुद्गलोने ग्रहण कर्या सिवाय अहीं आववा समर्थ छ ?-बाय पुद्गलोने प्रहण करीने भहीं आववा समर्थ छे ?–बाह्य पुद्गलोने प्रहण करीने बोलवा बगेरे क्रिया करवा समर्थ छ ? पृ० ११.-शकर्नु उत्सुकतापूर्वक वादीने जवानुं कारण.-सम्यग्दृष्टि गंगदत्त देवनी उत्पत्ति भने तेनो मिथ्यादृष्टि देवनी साथे संवाद.-परिणाम पामता पुद्गलो परिणत कहेवाय-गंगदत्त देव- भगवंत पासे आगमन. पृ० १२-गंगदत्तनो भगवंतने प्रश्न.-गंगदत्त देव भवसिद्धिक छे के अभवसिद्धिक छे इत्यादि प्रश्न.-गंगदत्तनी दिव्य देवर्द्धि क्यों गई ? पृ०१३हस्तिनापुर.-सहस्रामवण.-गंगदत्त गृहपति.-मुनिसुव्रत खामीनुं आगमन.-मुनिसुव्रत खामीनी देशना अने गंगदतने प्रतिबोध थवो.-गंगदत्ते दीक्षा लेवी. पृ. १४-गंगदत्तनी महाशुक्र कल्पमा देवतरीके उत्पत्ति.-गंगदत्तनी आयुषस्थिति.-गंगदत्त देवलोकथी च्यवी क्या जशे ! पृ० १५.
शतक १६ उद्देशक ६ पृ. १५-२०. स्वप्नदर्शन.-स्वप्न क्यारे जुए! पृ० १५-जीवो सूता, जागता के सूता-जागता होय छे ?-पंचेन्द्रिय तिर्यचो सूता छे इत्यादि प्रश्न.-संवृत जीव केयूँ खप्न जुए ? जीवो संवृत छे इत्यादि प्रश्न.-खामना प्रकार.-महास्वपना प्रकार.-सर्प खमना प्रकार.-तीर्थकरनी माता केटला खमो जुए। पृ०१६-चक्रवतींनी माता केटलां खाम जुए ?-वासुदेवनी माता केटलां खन जुए?-छमावस्थामा भगवंत महावीरे दश वमोने जोवां पृ० १५.दश महाखमोर्नु फल, पृ०१८.-सामान्य खमनुं फळ. पृ० १९.-कोष्टपुट बगेरे वाय छे! पृ.२०.
शतक १६ उद्देशक ७ पृ० २१. उपयोग केटला प्रकारनो कह्यो छे ? पृ० २१.
शतक १६ उद्देशक ८ पृ. २१-२५. लोकनो पूर्णचरमांत. पृ. २१-दक्षिणादि चरमांत.-उपरनो चरमांत पृ. २२.-लोकनी हेठेनो चरमात.-रमप्रभाना पूर्वादि यरमास पृ. २३.-परमाणुनी गति-कायिकी आदि क्रिया.-देव अलोकमा हस्तादिने पसारखा समर्थ छे ! पृ० २५.
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