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शतक ४१.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
३६१ ६. [प्र०] जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा? [उ०] नो तिणढे समढे। ७. प्राजं समयं कडजुम्मा तं समयं कलियोगा, जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा? [उ०] णो तिणटे समटे ।
८. [प्र० ते णं भंते ! जीवा कहिं उववजन्ति ? [उ०] गोयमा ! से जहा नामए पवए पवमाणे-एवं जहा उवषायसप जाव-'नो परप्पयोगेणं उववजन्ति'।
९. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं आयजसेणं उववजन्ति, आयअजसेणं उववजन्ति ? [उ०] गोयमा ! नो आयजसेणं उववजंति, आयअजसेणं उववजन्ति।
१०. [प्र०] जइ आयअजसेणं उववजन्ति किं आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति ? [उ०] गोयमा ! नो आयजसं उवजीवंति, आयअजसं उवजीवंति ।
११. [प्र०] जब आयअजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा ? [उ०] गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा । १२. [३०] जइ सलेस्सा कि सकिरिया अकिरिया ? [उ०] गोयमा ! सकिरिया नो अकिरिया । १३. [प्र०] जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति, जाव-अंतं करेंति ? [उ०] णो तिणद्वे समढे।
१४. प्र०] रासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा णं भंते ! कओ उववजन्ति ? [उ०] जहेव नेरतिया तहेव निरवसेसं। एवं जाव-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया । नवरं वणस्सइकायिया जाव-असंखेजा वा अणंता वा उववजंति, सेसं एवं चेव । मणुस्सा वि एवं चेव, जाव-'नो आयजसेणं उववजन्ति, आयअजसेणं उववजंति' ।
. १५. [प्र०] जइ आयअजसेणं उववजन्ति, किं आयजसं उवजीवंति आयअजसं उवजीवंति ? [उ०] गोयमा ! आयजसं पि उवजीवंति, आयअजसं पि उवजीवंति ।
६. [प्र०] जे समये कृतयुग्मरूप होय ते समये द्वापरयुग्मरूप होय अने जे समये द्वापरयुग्म होय ते समये कृतयुग्मरूप होय ? कृतयुग्म अने दापर [उ०] ए अर्थ समर्थ नथी.
युग्मनो संबंध होय
७. [प्र० जे समये कृतयुग्मराशिरूप होय ते समये कल्योजराशिरूप होय अने जे समये कल्योजरूप होय ते समये कृतयुग्म- कृतयुग्म भने कल्यो. राशिरूप होय ? [उ०] ए अर्थ समर्थ नथी.
ज राशिनो संबन्ध
होय। ८. प्र०न हे भगवन् ! ते जीवो केवी रीते उत्पन्न थाय छे ? [उ०] हे गौतम! जेम कोइ एक प्लवक (कूदनार ) होय भने ते जीवोनो उपपात जेम कूदतो कूदतो पोताने स्थानके जाय छे-इत्यादि जेम *उपपातशतकमां कां छे तेम बधुं अहीं समजवू. यावत्-पोतानी मेळे उत्पन्न कवा रात थाय। थाय छे, पण परप्रयोगथी उत्पन्न थता नथी.
९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते जीवो आत्माना यशथी-संयमथी उत्पन्न थाय छे के आत्माना अयशथी-असंयमथी उत्पन्न थाय छे ! उपपातनो हेतु उ०] हे गौतम ! तेओ आत्माना यशथी उत्पन्न थता नथी, पण आत्माना अयशथी उत्पन्न थाय छे.
आत्मानो असंयम१०. [अ०] जो तेओ आत्माना असंयमथी उत्पन्न थाय तो शुं आत्मसंयमनो आश्रय करे छे के आत्माना असंयमनो आश्रय करे आत्मसंयम के आछे[उ०] हे गौतम ! तेओ आत्मसंयमनो आश्रय करता नथी पण आत्माना असंयमनो आश्रय करे छे.
त्मसंयमनो आ
अय करे । ११. [प्र०] जो तेओ आत्माना असंयमनो आश्रय करे छे तो शुं तेओ लेश्यावाला छे के लेश्यारहित छे ? [उ०] हे गौतम ! सलेक्ष्य के अलेश्य ? तेओ लेश्यावाळा छे, पण लेश्यारहित नथी.
१२. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ लेश्यावाळा छे तो शुं तेओ क्रियावाळा छे के क्रियारहित छे ! [उ० हे गौतम! तेओ सलेश्य सक्रिय होय क्रियावाळा छे, पण क्रियारहित नथी.
के अक्रिय
१३. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ क्रियावाळा छे तो शुं तेओ तेज भवमा सिद्ध थाय छे, यावत्-कर्मनो अंत करे छे! [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी.
१४. [प्र०] हे भगवन् ! कृतयुग्मराशि प्रमाण असुरकुमारो क्याथी आवी उत्पन्न थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! जेम नैरयिको संबंधे कृतयुग्मराशिरूप कडं तेम असुरकुमारो संबंधे पण बधुं जाणवु. ए रीते यावत्-पंचेंद्रिय तिर्यंचयोनिको सुधी समजवं. पण विशेष ए के, वनस्पतिकायिको
उत्पत्ति. असंख्याता के अनंता उत्पन्न थाय छे. बाकी बधुं तेमज समजवु. ए रीते मनुष्यो संबंधे पण समजवू. यावत्-आत्माना संयमथी उत्पन्न थता नथी पण आत्माना असंयमथी उत्पन्न थाय छे. १५. [प्र०] हे भगवन् ! जो तेओ आत्माना असंयमथी उत्पन्न थाय छे तो शुं तेओ आत्मसंयमनो आश्रय करे छे के आत्माना मनुष्योना उपपातर्नु
कारण आत्मानो असंयमनो आश्रय करे छे ! [उ०] हे गौतम | तेओ आत्मसंयमनो पण आश्रय करे छे अने आत्माना असंयमनो पण आश्रय करे छे.
असंयम.
* भग० ख०४ श० ३१ उ.१पृ० ३१२.
म० सू०
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