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शतक २५.-उद्देशक ७.
भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ८.०] सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स कि संखेजइभागे होजा, असंखेजाभागे-पुच्छा । [उ०] गोयमा! नो संखेजर-जहा पुलाए । एवं जाव-सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजए जहा सिणाए ३२ ।
८९ मा सामाइयसंजए णं भंते ! लोगस्स किं संखेजहभागं फुसइ०१ [उ०] जहेव होजा तहेव फुसह (३३)।
९०.०] सामाइयसंजए णं भंते! कयरंमि भावे होजा? [उ०] गोयमा ! खओवसमिए भावे होजा । एवं जावसुहुमसंपराए।
९१. प्र०] अहक्खायसंजए-पुच्छा। [उ०] गोयमा! उवसमिए वा खइए वा भावे होजा (३४)।
९२. [प्र०] सामाइयसंजया गं भंते ! एगसमएणं केवतिया होजा? [उ०] गोयमा! पडिवजमाणए य पडुच्च जहा फसायकुसीला तहेव निरवसेसं।
९३. [प्र०] छेदोवट्ठावणिया-पुच्छा । [उ०] गोयमा! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि । जइ अत्थि जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहुत्तं । पुष्वपडिवन्नए पडुच्च सिय अत्थि सिय नत्थि; जइ अत्थि जहानेणं कोडिसयपुहुत्तं, उक्कोसेण वि कोडिसयपुहुत्तं । परिहारविसुद्धिया जहा पुलागा । सुहुमसंपराया जहा नियंठा ।
९४. [प्र०] अहक्खायसंजया णं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अत्थि सिय नत्थि । जइ अस्थि जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं बावट्ठसयं-अट्टत्तरसयं खवगाणं, चउप्पन्नं उवसामगाणं । पुचपडिवन्नए पडुप. जहन्नेणं कोडिपुहुत्तं, उक्कोसेण वि कोडिपुहुत्तं ।
.९५. प्र०] एएसि गं भंते। सामाइय-छेओवट्ठावणिय-परिहारविसुद्धिय-सुहुमसंपराय-अहक्खायसंजयाणं कयरे
८८. [प्र०] हे भगवन् | शुं सामायिक संयत लोकना संख्यातमा भागे होय के असंख्यातमा भागे होय ? [उ०] हे गौतम। ३२ क्षेत्रदारलोकना संख्यातमा भागे न होय-इत्यादि पुलाकनी पेठे ( उ० ६ सू० १५४ ) जाणवू. ए रीते यावत्-सूक्ष्मसंपराय सुधी जाणवू. तथा स्नातकनी पेठे (उ०६ सू०१५४) यथाख्यात संयतने विषे समजवू.
८९. [प्र०] हे भगवन् ! शुं सामायिक संयत लोकना संख्यातमा भागने स्पर्शे ! [उ०] हे गौतम! जेटला भागमा होय तेटला ५३ स्पर्शनासारभागनो स्पर्श करे, अर्थात् जेटला क्षेत्रनी अवगाहना कही तेटला क्षेत्रनी स्पर्शना जाणवी.
९०. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयत कया भावमा होय ? [उ०] हे गौतम ! क्षायोपशमिक भावमा होय. ए रीते यावत्-. १४ भावदारसूक्ष्मसंपराय सुधी जाणवू.
९१. [प्र०] हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कया भावमा होय ? [उ०] हे गौतम ! औपशमिक के क्षायिक भावमा होय.
९२. [प्र०] हे भगवन् ! सामायिक संयतो एक समये केटला होय ? [उ०] हे गौतम ! प्रतिपद्यमान ( वर्तमान समये सामायिक- ३५ परिमाणदारसंयतपणाने प्राप्त थता ) सामायिक संयतोनी अपेक्षाए-इत्यादि बधुं कषायकुशीलनी पेठे (उ०६.सू०-१६०) जाणवू.
९३. [प्र०] हे भगवन् ! छेदोपस्थापनीय संयतो एक समये केटला होय ? [उ०] हे गौतम ! *प्रतिपद्यमानने आश्रयी छेदोपस्थापनीय संयतो कदाच होय अने कदाच न होय. जो होय तो जघन्य एक, बे के त्रण अने उत्कृष्ट बसोथी नवसो सुधी होय. पूर्वप्रतिपन्नने आश्रयीजेओ पूर्वे छेदोपस्थानीय चारित्रने प्राप्त थयेला छे तेओनी अपेक्षाए-कदाच होय अने न होय. जो होय तो जघन्य अने उत्कृष्ट बसोथी नवसो क्रोड सुधी होय. परिहारविशुद्धिको पुलाकोनी पेठे (उ०६ सू०१५८) अने सूक्ष्मसंपरायो निग्रंथोनी पेठे (उ०६सू० १६१) जाणवा. - ९४. [प्र०] हे भगवन् ! यथाख्यात संयतो एक समये केटला होय ! [उ०] हे गौतम ! प्रतिपद्यमान यथाख्यात संयतोनी अपेक्षाए कदाच होय भने कदाच न होय. जो होय तो जघन्य एक, बे अने त्रण तथा उत्कृष्ट एकसो बासठ होय. तेमां एकसो आठ क्षपको भने चोपन उपशमको होय. पूर्वप्रतिपन्नने आश्रयी जघन्य अने उत्कृष्ट बे क्रोडथी नव क्रोड सुधी होय. • ९५. [प्र०] हे भगवन् ! ए पूर्वोक्त सामायिक संयत, छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धिक संयत, सूक्ष्मसंपराय संयत अने ३६ भल्पपदुत्वयथाख्यात संयतमां कया कोनाथी यावत्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! सूक्ष्मसंपरायसंयतो सौथी थोडा छे, तेथी परिहारविशु
९३ * छेदोपस्थापनीय संयतनुं उत्कृष्ट परिमाण प्रथम जिनना तीर्थने आश्रयी संभवे छे. पण जघन्य परिमाण बरोबर समजातुं नथी. कारण के पांचमा आराने अन्ते भरतादि दश क्षेत्रोमा प्रत्येक क्षेत्रे बब्बे संयतो होवाथी जघन्य वीश छेदोपस्थापनीय संयत होय. कोइ आचार्यो एम कहे छे के जघन्य परिमाण पण प्रथम जिनना तीर्थने आश्रयी जाणवू. जघन्य कोटिशतपृथक्त्व अल्प अने उत्कृष्ट कोटिशतपृथक्त्व अधिक जाणवू-टीका.
९५f सौथी थोडा सूक्ष्मसंपराय संयतो छे, कारण के तेनो काळ थोडो छे. अने ते निम्रन्थना तुल्य होवाथी एक समये शतपृथक्त्व-बसोथी नवसो सुधी होय छे. तेथी परिहारविशुद्धिक संयतो संख्यातगुणा छे, कारण के तेनो काल तेथी अधिक छे, अने तेओ पुलाकनी पेठे सहस्रपृथक्त्व होय छे. तेथी यथाख्यात संयतो संख्यातगुणा छे, कारण के तेनुं प्रमाण कोटिपृथक्त्व छे. तेथी छेदोपस्थापनीय संयतो कोटिशतपृथक्त्व प्रमाण होवाथी संख्यातगुणा छे. तेथी सामायिक संयतो कषायकुशीलना तुल्य कोटीसहस्रपृथक्त्व प्रमाण होवाथी संख्यातगुणा छे.-टीका.
३५ भ. सू.
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