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________________ १२ आ ज जातना यज्ञर्नु खरूप जिनप्रवचनमां ठेकठेकाणे बतावेलुं छे. भगवान महावीरे ते वखतना समाजमां यज्ञविषेनी आ जातनी मान्यतानो प्रचार करीने हिंसात्मक यज्ञनो छडेचोक विरोध करेलो अने तेने अटकावेलो. भगवानना वखतमा अने आजे पण मात्र जळस्नानमा घणा लोको धर्म समजे छे. गंगास्नान, त्रिवेणीस्नान, प्रयागस्नानना माहाम्यने लगता ग्रंथोनी परम्परा आपणा देशमा आज केटलाक वखतथी चाली आवे छे. अने भोळा लोको गंगामां स्नान करीने पोताने पुण्य मळ्यानुं माने छे. आ जातना स्नानना माहात्म्यनी असरथी अत्यारना जैनो पण शेजी नदीना स्नानने धर्म मानवा लाग्या छे. भगवान कहे छे के ए स्नान तो मात्र शरीरना मळने ते पण घडीभरने माटे ज दूर करे छे पण आत्माना मळने जरापण दूर नथी करी शकतुं तेथी ते स्नान खरा पुण्यनुं कारण नथी. पण खरं स्नान करवू होय तो धर्मरूप जलाशयमां आवेला ब्रह्मरूप पवित्र घाटे स्नान करे तो खरेखरो शीत, विमळ अने विशुद्ध थाय छे. तथा आत्ममळनो त्याग करे छे. आ ज स्नानने कुशळ पुरुषोए महास्नान तरीके वर्णवेलुं छे अने ऋषिओने तो ते ज प्रशस्त छे.' भगवाने स्नाननी आ जातनी व्याख्या करीने विवेकपूर्वकना बाह्य स्नाननो निषेध कर्यों छे एम मानवानुं कारण नथी. पण जे लोको मात्र जलस्नानमा ज धर्म मानता अने तेथी ज आत्मशुद्धि समजता तेओने माटे भगवाने जीवनशुद्धि माटे खरा स्नाननं खरूप बतावीने स्नाननो खरो मार्ग खुल्लो कयों छे. तेमना वखतमा लोको पुण्यकर्म समजीने वेदने मात्र कंठस्थ करी राखता अने अर्थनो विचार'भाग्ये ज करता. वेदना अर्थनी परम्परा भगवानना पहेलांना समयथी तूटी गयेली होवानो पुरावो यास्काचार्य पोते ज छे, कारण के ते वैदिक शब्दोना स्पष्ट अर्थ करी शकता नथी पण तेने लगता अनेक मतमतांतरो साथे पोतानो अमुक मत जणावे छे एटले घणा वखतथी वेदना अर्थनो विचार करवो लोकोए मांडी वाळेलो अने वेद जूनो ग्रंथ होई तेने कंठस्थ करवामां अने खरपूर्वक उच्चारण करवामां ज पुण्य मनातुं अने ब्राह्मणो एम मानता के वेदने भणीने, ब्राह्मणोने जमाडीने अने पुत्र उत्पन्न करीने पछी आरण्यक तपस्वी थवाय. पण आ जातर्नु जड कर्मकांड जीवनशुद्धिनुं एकांत घातक छे एम समजीने उत्तराध्ययनसूत्रमा कहेवामां आव्युं छे के वेदोनुं अध्ययन आत्मानुं रक्षण करी शकतुं नथी. जमाडेला ब्राह्मणो आळसु थवाथी जमाडनारने लाभ देवाने बदले ऊलटा नरकमां पाडे छे अने अपुत्रस्य गतिर्नास्ति एवो जे वैदिक प्रवाद छे ते पण बराबर नथी. कारण के उत्पन्न करेला पुत्रो पण पिताना के पोताना आत्मानुं रक्षण करी शकता नथी. आ रीते जिनप्रवचनमा वेदना शुष्क अध्ययननो विरोध करवामां आव्यो छे अने ज्ञान अने आचार उपर एक सरखो भार मूकवामां आव्यो छे. १ "उद्गेण जे सिद्धिमुदाहरति सायं च पायं उदगं फुसंता। । १ सांजे अने सवारे पाणीनो स्पर्श करता जे लोको पाणी वडे सिद्धि उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी सिझिसु पाणा बहवे दगंसि ॥ १४ | माने छे तेमने मते तो पाणीना स्पर्शवडे पाणीमा रहेनारा जीव मात्रनी सिद्धि थवी जोईए ज. (१४) मच्छा य कुम्मा य सिरीसिवा य मग्गू य उद्या दगरक्खसा य। जेवां के, माछला, काचवा, सर्पो, उंटो (आ एक प्रकारचें जळचर प्राणी अट्ठाणमेयं कुसला वयंति उदगेण जे सिद्धिमुदाहरैति" ॥ १५ छे) अने जळराक्षसो-आ बधा प्राणीओ निरंतर जीवनपर्यंत -सूत्रकृतांग प्रथमश्रुतस्कंध अध्ययन-७ पाणीमा रहे छे तो एमर्नु निर्वाण थर्बु जोइए. पण एम थतुं नथी माटे जे लोको मात्र जलनानथी सिद्धि थवानुं कहे छे ते खोटुं छ एम कुशळ पुरुषो कहे छे. (१५) २ "धम्मे हरए बंभे संतितित्थे अणाविले अत्तपसन्नलेसे । | २ खरं स्नान तो आ छैः धर्मरूप पाणीनो धरो. होय, ब्रह्मचर्यरूप घाट जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो सुसीइभूओ पजहामि दोसं ॥ ४६ । होय, जो ए पवित्र, अने निर्मळ घाटे धर्मना धरामा स्नान करवामां एवं सिणाणं कुसलेण दिटुं महासिणाणं इसीणं पसत्थं । आवे तो स्नान करनारो विमळ, विशुद्ध अने शान्त थाय छे अने जहिं सिणाया विमला विसुद्धा महरिसी उत्तमं ठाणं पत्ते"त्ति बेमि ४७ दूषणोने छोडी दे छे. आ मानने ज ऋषिओए महास्नान कहेलुं छे. -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१२ कारणके ए रीते नहावाथी विशुद्ध थएला महर्पिओ उत्तम स्थानने पामेला छे, (४६-४७) ३ "इमं वयं वेअविओ वयंति ३ वेदना जाणनाराओ आम कहे छे:-वेदोने भणीने, ब्राह्मणोने जमाटीने, अहिज वेए परिविस्स विप्पे पुत्ते परिटुप्प गिहंसि जाया!। छोकराओने वारसो सोंपीने अने संसारना भोगो भोगवीने पछी भुचाण भोए सह इत्थियाहिं आरण्णगा होइ मुणी पसत्था" ॥९| मुनि थर्बु ठीक छे. ९ उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१४ ४ "वेआ अहीमा न भवति ताणं"-उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन-१४ । ४ पाठे करेला वेदो रक्षण करी शकता नथी. १४ ५ इमं वयं वेभविओ वयंति-"जहा न होइ असुआण लोगो। । ५ आगळ जे एम कहेवामां आव्युं छे के पुत्ररहित मनुष्योने सद्गति भुत्ता दिना निति तमं तमेण जाया य पुत्ता न हवंति ताणं मळती नधी ते वरावर नथी. कारण के थएला पुत्रो पण रक्षण करी -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१४ शकता नथी अने जमाडवामा आवता ब्राह्मणो अंधारामां लई जाय छे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004643
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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