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शतक २४.-उद्देशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१४१ १२. प्र० तेसिणं भंते ! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ[उ०] गोयमा! तिनि लेस्साओ पन्नत्ताओ। तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा ६।
१३. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? [उ०] गोयमा! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी ७।
१४. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं णाणी, अन्नाणी ? [उ०] गोयमा ! णो णाणी, अन्नाणी, नियमा दुअन्नाणी, तं जहा-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य ८।।
१५. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी ? [उ०] गोयमा! णो मणजोगी, वयजोगी वि, कायजोगी वि ९।
१६. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? [उ०] गोयमा ! सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि १०।
१७. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति सन्नाओ पन्नत्ताओ ? [उ०] गोयमा! चत्तारि सन्ना पन्नचा, तं जहा-आहारसन्ना, भयसन्ना, मेहुणसन्ना, परिग्गहसन्ना ११ ।
१८. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता ? [३०] गोयमा ! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा-कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए १२ । .. १९. [प्र० तेसि णं भंते! जीवाणं कति इंदिया पन्नत्ता? [उ०] गोयमा! पंचिंदिया पन्नत्ता, तं जहा-सोइंदिए, चखिदिए, जाव-फासिदिए १३ ।
२०. [प्र०] तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्धाया पन्नत्ता ? [उ०] गोयमा! तओ समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहावेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्धाए, १४ ।
२१. [प्र०] ते णं भंते ! जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा ? [उ०] गोयमा! सायावेयगा वि, असायावेयगा वि १५।
१२. [प्र०] हे भगवन् ! तेओने ( असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यंचोने) केटली लेश्याओ कही छे ! [उ०] हे गौतम ! त्रण लेश्याओ ६ लेश्या. कही छे. ते आ प्रमाणे-कृष्णलेश्या, नीललेल्या अने कापोतलेश्या.
१३ [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते जीवो सम्यग्दृष्टि छे, मिथ्यादृष्टि छे के सम्यग्मिथ्यादृष्टि छे ? [उ०] हे गौतम! तेओ सम्यग्दृष्टि के दृष्टि. सम्यग्मिथ्यादृष्टि नथी, पण मिध्यादृष्टि छे. . १४. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी, पण अज्ञानी छे अने तेओने ८ ज्ञान अने अशान अवश्य बे अज्ञान होय छे, ते आ प्रमाणे-मतिअज्ञान अने श्रुतअज्ञान.
१५. [प्र०] हे भगवन् ! ते असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचो मनयोगवाळा, वचनयोगवाळा के काययोगवाळा छे ! [उ०] हे गौतम! योग. तेओ मनयोगवाळा नथी पण वचनयोग अने काययोगवाळा छे.
१६. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो साकार उपयोगवाळा छे के अनाकार उपयोगवाळा छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ साकार भने १० उपयोग. अनाकार बन्ने उपयोगवाळा छे.
१७. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोने केटली संज्ञाओ होय छे ? [उ०] हे गौतम! तेओने चार संज्ञाओ होय छे, ते आ ११ संशा. प्रमाणे-१ आहारसंज्ञा, २ भयसंज्ञा, ३ मैथुनसंज्ञा अने ४ परिग्रहसंज्ञा.
१८. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोने केटला कषायो होय छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओने चार कषायो होय छे, ते आ प्रमाणे-१ १२ कषाय. क्रोधकषाय, २ मानकषाय, ३ मायाकषाय अने ४ लोभकषाय.
१९. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोने केटली इन्द्रियो होय छे ? [उ०] हे गौतम | तेओने पांच इन्द्रियो होय छे, ते आ प्रमाणे- १३ इन्द्रिय. १ श्रोत्रेन्द्रिय, २ चक्षुइन्द्रिय, यावत्-५ स्पर्शेन्द्रिय.
२०. [प्र०] हे भगवन् ! ते जीवोने केटला समुद्घातो कह्या छे! (उ०] हे गौतम! तेओने त्रण समुद्घातो कह्या छे, ते आ १४ समुद्घात. प्रमाणे-१ वेदनासमुद्घात, २ कषायसमुद्घात अने ३ मारणान्तिक समुद्घात.
२१. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते जीवो साता-सुख अनुभवे छे के असाता-दुःख अनुभवे छे! [उ०] हे गौतम! तेओ सुख १५ वेदना. अनुभवे छे अने दुःख पण अनुभवे छे.
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