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शतक १३.-उद्देशक ७.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. .. ८. [प्र०] कतिविहा णं भंते ! भासा पण्णता ? [उ०] गोयमा ! चउधिहा भासा पण्णत्ता, तंजहा-१ सच्चा, २ मोसा, ३ सञ्चामोसा, ४ असञ्चामोसा। .. ९. [प्र०] आया भंते ! मणे, अन्ने मणे ? [उ०] गोयमा ! नो आया मणे, अन्ने मणे । जहा भासा तहा मणे वि, जावनो अजीवाणं मणे।
१०. [प्र०] पुष्विं भंते ! मणे, मणिजमाणे मणे? [उ.] एवं जहेव भासा ।
११. [३०] पुष्विं भंते ! मणे भिजति, मणिजमाणे मणे भिजति, मणसमयवीतिकंते मणे भिजंति ? [उ०] एवं जहेव भासा।
१२. [प्र०] कतिविहे णं भंते ! मणे पण्णत्ते? [उ०] गोयमा ! चउधिहे मणे. पन्नत्ते, तंजहा-१ सच्चे, जाय-४ असञ्चामोसे।
१३. [प्र०] आया भंते ! काये, अन्ने काये ? [उ०] गोयमा ! आया वि काये, अन्ने वि काये ।
१४. प्र० रूवि भंते ! काये, अरूवि काये?-पुच्छा । [उ०] गोयमा! रूवि पि काये, अरूवि पि काए, एवं एकेके पुच्छा। गोयमा! सञ्चित्ते वि काये, अश्चित्ते वि काए । जीवे वि काए, अजीवे वि काए, जीवाण विकाए, अजीवाण विकाए। . १५. [प्र०] पुyि भंते ! काये ?-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पुyि पि काए, कायिजमाणे वि काए, कायसमयवीतिकतें वि काये।
१६. [प्र०] पुyि भंते ! काये भिजति ?-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! पुषि पि काए मिजति, जाव-काए भिजति ।
८. [प्र०] हे भगवन् ! भाषा केटला प्रकारनी कही छे ! [उ०] हे गौतम ! भाषा चार प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-१ सल्य, भाषाना मकार. २ मृषा-असत्य, ३ सत्यमृषा-सत्य त्यने असत्य मिश्र, अंने ४ असल्यामृषा-सत्य पण नहि तेम असत्य पण नहि.
९. [प्र०] मन ए आत्मा छ, के तेथी अन्य मन छ ? [उ०] हे गौतम ! मन ए आत्मा नथी, पण मन अन्य छे–इत्यादि जेम भाषा .. मन. संबन्धे का, तेम मनसंबन्धे पण जाणवू, यावत्-अजीवोने मन नथी.
मन भात्मा छे के
तेषी भन्य छ। १०. [प्र०] हे भगवन् ! [मनननी] पूर्वे मन होय, मनन समये मन होय, के मननसमय वील्या पछी मन होय ! [उ०] जेम मन क्यारे होय? भाषासंबन्धे कयुं तेम जाणवू.
११. [प्र०] हे भगवन् ! मनननी पूर्वे मन मैदाय, मननसमये मन भेदाय, के मननसमय वीत्या पछी मन मेंदाय ! [उ०] जेम मन क्यारे मेदाय? भाषासंबन्धे कयु छे तेम अहिं जाणवू.
१२. प्रि०] हे भगवन् ! मन केटला प्रकारचें कयुं छे[उ०] हे गौतम ! मन चार प्रकारचं कडं छे, ते आ प्रमाणे-१ सल्य, मनना प्रकार. २ असत्य, [३ मिश्र] यावत्-४ असल्यामृषा-सत्य पण नहि अने असत्य पण नहि.
१३. [प्र०] हे भगवन् ! काय-शरीर आत्मा छे के तेथी अन्य-आत्माथी *भिन्न-काय छे ! [उ०] हे गौतम ! काय आत्मा पण काय आत्मा के के छे, अने आत्माथी मिन्न पण काय छे.
तेथी अन्य।
१४. [प्र०] हे भगवन् ! काय रूपी छे के अरूपी छे ! [उ०] हे गौतम! काय रूपी पण छे अने काय अरूपी पण छे. ए रूपी के अरूपी ? प्रमाणे पूर्ववत् एक एक प्रश्न करवो. हे गौतम! काय सचित्त पण छे अने अचित्त पण छे, काय जीवरूप पण छे भने अजीवरूप पण छे, तथा काय जीवोने होय छे, तेम अजीवोने पण होय छे
१५. [प्र०] हे भगवन् ! पूर्वे काय होय?-इत्यादि पूर्ववत् ] प्रश्न. उ०] हे गौतम! काय-शरीर [जीवनो संबन्ध थया] पूर्वे पण काय क्यारे होय? होय, चीयमान-पुद्गलोना ग्रहण समये पण काय होय, अने कायसमय-पुद्गल ग्रहण समय वील्या पछी. पण काय होय.
१६. [प्र०] हे भगवन्! काय [जीवे ग्रहण कर्या] पूर्वे भेदाय !-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पूर्वे पण काय भेदाय, यावत्- काय क्यारे भेदाय ? पुद्गल ग्रहण समय वीत्या बाद] पण यावत्-भेदाय.
. १३* काय-आत्मखरूप छे, केमके काये करेला कर्मनो अनुभव आत्माने थाय छ, अथवा काय आत्माथी मिन्न छ, केमके कायना एक अंशनो छेद थवा छतां पण आत्मानो छेद थतो नथी, माटे आ प्रश्न उपस्थित थाय छे. उत्तर-कथंचितू काय आत्मखरूप पण छे, केमके शरीरने स्पर्श थता तेनो भात्माने अनुभव थाय छे, तेमज कथंचिंदू आत्माथी भिन्न पण छ, जो अत्यंत अभिन्न होय तो. शरीरनो नाश थता आत्मानो नाश पण थाय-टीका.
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