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________________ शतक १३.-उद्देशक २. भगवत्सुधर्मखामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २०९ ९.प्र०] सोहम्मे पं.भंते! कप्पे केवतिया विमाणावाससयसहस्सा पन्नता? [उ०] गोयमा! बत्तीसं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता । [प्र०] ते णं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडा ? [उ०] गोयमा! संखेजवित्थडा वि असं. खेजवित्थडा.वि.। १०.[सोहम्मे णं भंते! कप्पे बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु विमाणेसु एगसमएणं केवतिया सोहम्मा देवा उववजंति, केवतिया तेउलेस्सा उववजंति? [उ०] एवं जहा जोइसियाणं तिन्नि गमगा तहेव तिन्नि गमगा भाणि• यथा, नवरं तिसु वि 'संखेजा' भाणियधा, ओहिनाणी ओहिदंसणी य चयावेयधा, सेसंतं चेव । असंखेजवित्थडेसु एवं चेव तिन्नि 'गमगा, णवरं तिसु. वि गमएसु 'असंखेजा' भाणियथा । ओहिनाणी य ओहिदसणी य संस्खेजा चयंति, सेसं तं चेव । एवं जहा सोहम्मे वत्तवया भणिया तहा ईसाणे वि छ गमगा भाणियवा। सणंकुमारे एवं चेव, नवरं इत्थीवेयगा न उवधजंति, पत्रत्तेसु य न भण्णंति, असन्नी तिसु वि गमएसु न भण्णंति, सेसं तं चेव, एवं जाव-सहस्सारे, नाण विमाणेसु लेस्सासु य, सेसं तं चेव । ११..[प्र०] आणय-पाणएसु.णं भंते ! कप्पसु केवतिया विमाणावाससया पण्णता?[उ०] गोयमा!चत्तारि विमा णावाससया पण्णत्ता। प्र०] तेणं भंते ! किं संखेजवित्थडा, असंखेजवित्थडाउ०] गोयमा! संखेजवित्थडा वि, असंखेजवित्थडा वि । एवं संखेजवित्थडेसु तिन्नि गमगा जहा सहस्सारे, असंस्नेजवित्थडेसु उववजंतेसु य चयंतेसु य एवं चेव 'संखेजा' भाणियचा, पन्नत्तेसु असंत्रेजा, नवरं नोइंदियोवउत्तां अणंतरोववनगा अणंतरोगादगा अणंतराहारगा अणंतरपजत्तगा य पपसिं जहन्नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उकोसेणं संखेजा, पन्नत्तेसु असंखेज्जा माणियवा। आरण-शुएसु एवं चेव जहा आणय-पाणएसु, नाणत्तं विमाणेसु, एवं गेवेजगा वि । ९.प्र०] हे भगवन् ! सौधर्म देवलोकने विषे केटला लाख विमानावासो कहेला छे! [उ०] हे गौतम! बत्रीश लाख विमानावासो सौधर्मदेवलोककहेला छे. [प्र०] हे भगवन्! ते विमानावासो अ॒ संख्याता योजनविस्तारवाळा छे के असंख्यातयोजनविस्तारवाळा छे! [उ०] हे गौतम! ' संख्याता योजनविस्तारवाळा छे अने असंख्यात योजनविस्तारवाळा पण छे. १०. [प्र०] हे भगवन् । सौधर्म देवलोकने विषे बत्रीश लाख विमानावासोमांना संख्यातायोजन विस्तारवाळा विमानोने विषे एक एक समये सौष मैपी मांडीने समये केटला सौधर्म देवो उत्पन्न थाय, केटला तेजोलेश्यावाळा उत्पन्न थाय : [उ०] जेम ज्योतिषिकोने त्रण आलापको कह्यां तेम अहिं पण सासारखी त्रण आलापको कहेवां, परन्तु त्रणे आलापकोमा 'संख्याता' एवो पाठ कहेवो. [अहिंथी नीकळी तीर्थकरादि चाय माटे] 'अवधिज्ञानी अने बोनो उत्पाद.. अवधिदर्शनी च्यवे'-एम कहे, बाकी बधु पूर्व प्रमाणे जाणवू. असंख्यातायोजनविस्तारवाळा विमानावासोमा ए प्रमाणे त्रण आलापको कहेवा, परन्तु एटलो विशेष छे के ए त्रणे आलापकोमा 'असंख्याता' एवो पाठ कहेवो. अवधिज्ञानी अने अवधिदर्शनी संख्याता च्यवे छे. [केमके तीर्थकरादिक अवधिज्ञान अने अवधिदर्शन सहित च्यवे अने ते संख्याता होय.] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे जेम सौधर्म देवलोकनी वक्तव्यता कही, तेम ईशान देवलोकने विषे [त्रण संख्याताना अने त्रण असंख्याताना] ए प्रमाणे छ आलापको कहेवा. सनकुमारने विषे पण एमज जाणवं, परन्तु एटलो विशेष छे के अहिं स्त्रीवेदवाळा उत्पन्न थता नथी, तेम सत्तामा पण होता नथी. त्रणे आलापकोने विषे असंज्ञी न कहेवा. [कारण के अहिं संज्ञीथी आवी उपजे छे अने संज्ञीने विषे जाय छे.] बाकी, बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-सहस्रार देवलोक सुधी जाणवं, परन्तु विमानो अने लेश्याओमां विशेष छे. बाकी बधुं पूर्वनी पेठे जाणवू. ११. [प्र०] हे भगवन् ! आनत अने प्राणत देवलोकने विषे केटला शत (सेंकडो) विमानावासो कहेला छे! [उ०] हे गौतम! मानत भने मा णत देवकोका चारसो विमानावासो कहेला छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते विमानावासो अ॒ संख्याता योजनविस्तारवाय छे के असंख्यातायोजनविस्तारवाया। विमानावासछे! [उ०] हे गौतम! संख्याता योजन विस्तारवाळा पण छे अने असंख्यातयोजनविस्तारवाळा पण छे. ए प्रमाणे संख्यातायोजनविस्तारवाळा विमानावासोने विषेत्रण आलापको सहस्रार देवलोकनी पेठे कहेवा. *असंख्यात योजनविस्तारवाळा विमानोने विषे उत्पाद अने च्यवन संबन्धे ए प्रमाणे 'संख्याता' ज कहेवां; सत्तामा असंख्याता कहेवा; परन्तु एटलो विशेष छे के नोइंद्रिय-मनना उपयोगवाळा, अनन्तरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ, अनंतराहारक अने अनंतरपर्याप्ता-ए पांच पदने विषे जघन्यथकी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता उपजे, अने सत्तामा असंख्याता होय-एम कहे. जेम आनत अने प्राणतने विषे कह्यु, तेम आरण अने अच्युतने विषे पण ए प्रमाणे जाणवं, परंतु विमानोनी संख्यामा विशेषता छे. ए प्रमाणे प्रैवेयक संबंधे पण जाणवू. . ११* मानतादि देवलोकमां संख्यातायोजनविस्तारवाळा विमानावासमा उत्पाद, च्यवन अने स्थिति विषे संख्याता देवो होय छे, अने असंख्यात योजन विस्तारवाळा विमानोमां उत्पाद अने च्यवनने विषे संख्याता होय छे, अने स्थितिविषे असंख्याता देवो होय छे, कारण के गर्भज मनुष्य की ज आनतादि देवोमा उत्पंज थाय छे, तथा ते देवो त्यांथी च्यवीने गर्भज मनुष्यमा ज उत्पन्न थाय छ, भने ते संख्याताज होय छे, माटे एक समये संख्यातानों ज उत्पाद अने च्यवन संभवे छ, भने तेओर्नु भायुष असंख्यवर्षर्नु होवाथी तेना जीवनकालमा असंख्य देवो उपजे छे, तेथी स्थितिने विषे असंख्याता देवो होय छे.-टीका. अहिं आरण अने अच्युत देवलोकमां त्रणसो विमान छे. प्रवेषक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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