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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनांगमसंग्रहे शतक १२:-उद्देशक १०. य नोआयाति य, ४ देसे आदितु सम्भावपजवे देसे आदिटे असम्भावपजवे चउभंगो, सम्भावपजवेणं तदुभयेण य चउभंगो, असम्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो, देसे आदिट्टे सम्भावपजवे देसे आदिट्टे असम्भावपज्जवे देसे आदिट्टे तदुभयपज्जवे चउप्पा एसिए खंधे आया य नोआया य अवत्तवं आयाति य नो आयाति य १६, देसे आदितु सम्भावपज्जवे देसे आदिट्टे असम्भावपजवे देसा आदिट्ठा तदुभयपजवा चउप्पएसिए खंधे भवद आया य नोआया य अवत्तन्वाइं आयाओ य नोभायाओ य १७, देसे आदितु सम्भावपजवे देसा आदिट्ठा असम्भावपजवा देसे आदितु तदुभयपजवे चउप्पएसिए खंधे माया य नोआयाओ य अवत्त आयाति य नोआयाति य १८, देसा आइट्रा सम्भावपजवा देसे आइट्टे असम्भावपज्जवे देसे आइट्रे तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आयाओ य नोआया य अवत्तचं आयाति य नो आयाति य १९, से तेणटेणं गोयमा! एवं बुधह चउप्पएसिए खंधे सिय आया सिय नोआया सिय अवत्त, निश्खेवे ते चेव भंगा उच्चारेयवा जाव-नोआयाति य । २३. प्र०ा आया भंते ! पंचपएसिए खंधे अन्ने पंचपएसिए खंधे ? [उ०] गोयमा! पंचपएसिप खंधे १ सिय भाया, २ सिय नोआया, ३ सिय अवत्त आयाति य नोआयाति य, ४-७ सिय आया य नोभाया य सिय अवत्तवं ४, ८-११ नोआया य अवत्तष्वेण य४, तियगसंजोगे पक्कोण पडइ । . २४. [प्र० से केणटेणं भंते! तं चेव पडिउच्चारेयचं। [30] गोयमा! १ अप्पणो आदिट्टे आया, २ परस्स आदिट्टे नोआया, ३ तदुभयस्स आदिद्वे अवत्तचं, ४ देसे आदितु सब्भावपजवे देसे आदिट्टे असब्भावपजवे-एवं दुयगसंजोगे सो पडंति तियगसंजोगे एकोण पडइ । छप्पएसियस्स सधे पडंति । जहा छप्पएसिए एवं जाव-अणंतपएसिए । 'सेवं भंते । सेवं भंतेति जाव-विहरति । बारसमसए दसमो उद्देसो समत्तो। समत्तं बारसमं सयं। वपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशर्थी अंसद्भावपर्यायनी अपेक्षाए [एकवचन अने बहुवचनना] चार भांगा थाय छै, सद्भावपर्याय अने तदुभयनी अपेक्षाए चार भांगा थाय छे, तथा असद्भाव अने तदुभयनी अपेक्षाए पण चार भांगा थाय छे, तथा १६ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मा-ए उभयरूपे अवक्तव्य छे, १७ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए, देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए भने देशोना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा, नोआत्मा अने आत्माओ तथा नोआमाओरूपे अवक्तव्य छे, १८ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए, देशोना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदे यपर्यायनी अपेक्षाए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्मा, नोआत्माओ अने आत्मा तथा नोआत्मा-उभयरूपे अव्यक्तव्य छे, १९ देशोना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए, देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए, अने देशना आदेशथी तदुभयपर्यायनी अपेक्षाए चतुष्प्रदेशिक स्कंध आत्माओ, नोआत्मा अने आत्मा तथा नोआत्मारूपे अवक्तव्य छे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के, चतुष्प्रदेशिक स्कंध कथंचिद् आत्मा छे, कथंचिद् नोआत्मा छे अने कथंचित् अवक्तव्य छे,-ए निक्षेपमा पूर्वोक्त भांगाओ यावद्-'नो आत्मा छे" त्या सुघी कहेवा. (चमदेशिक स्कन्ध- २३. [प्र०] हे भगवन् ! पंचप्रदेशिक स्कंध आत्मा छे, के तेथी अन्य पंचप्रदेशिक स्कंध छे ? [उ०] हे गौतम ! पंचप्रदेशिक बा २२ मांगाओ. स्कंध १ *कथंचित् आत्मा छे, २ कथंचित् नोआत्मा छे, अने ३ आत्मा तथा नोआत्मारूपे कथंचित् अवक्तव्य छे, ४ कथंचित् आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा अने अनात्मा-उभयरूपे कथंचित् अवक्तव्य छे. नोआत्मा अने अवक्तव्यवडे ए प्रमाणे चार भांगा करवा, त्रिक संयो गमा ( आठ भांगा थाय छे) एक आठमो भांगो उतरतो नथी, एटले सात भांगाओ थाय छे. (कुल मळीने बावीश भांगाओ थाय छे.) धा हेतुथी ते 'आत्मा' २४. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी (पंचप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा छे)-इत्यादि पाठनो पुनः उच्चार करवो. [उ०] हे गौतम ! १ इत्यादिरूप छे ? (पंचप्रदेशिक स्कन्ध ) पोताना आदेशथी आत्मा छे, २ परना आदेशथी नोआत्मा छे, ३ तदुभयना-आदेशथी अवक्तव्य छ, ४ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाए कथंचित आत्मा के भने आत्मा नथी-ए प्रमाणे द्विकसंयोगमा सर्वे भांगा उपजे छे, मात्र त्रिकसंयोगमा (आठमो) एक भांगो उतरतो नथी. षट्प्रदेशिक स्कन्धने विषे सर्वे भांगाओ लागु पडे. छे, जेम षट्प्रदेशिक स्कन्धने विषे कह्यु, तेम यावत्-अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध संबन्धे जाणवं, 'हे भगवन्! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे-' एम कही [भगवान् गौतम] यावद् विहरे छे. . द्वादश शतके दशम उद्देशक समाप्त द्वादश शतक समाप्त. . २३ * पंचप्रदेशिक स्कन्धना बावीश भांगा थाय छे, तेमां आदिना त्रण भांगा पूर्व प्रमाणे सकलादेशरूप छे, त्यार पछीना त्रण भांगाना प्रत्येके चार चार विकल्प थाय छ, भने सातमा भांगाना सात विकल्प थाय छे. त्रिकसंयोगना मूळ आठ भांगा थाय, तेमां अहिं प्रथमना सात भांगा ग्रहण करवा, एक छेल्ला. भांगानो भसंभव होवाथी ते न ग्रहण करवो. छ प्रदेशिक स्कन्धने विषेत्रेवीश भांगा थाय छे.-टीका. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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