SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ .. श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रद्दे शतक १२.-उद्देशक ४. २०. [प्र०] एगमेगस्स णं भंते ! नेरश्यस्स नेइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलंपरियद्वा अतीतां! [उ०] नस्थि एको वि। [प्र०] केवतिया पुरेक्खडा ? [उ०] नत्थि एको वि। २१. [प्र०] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा० उ०] पवं चेव, एवं जाव-थणियकुमारत्ते जहा असुरकुमारत्ते ।। २२. प्रि० एगमेस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीता [उ. अणंता, [प्र०] केवतिया पुरेक्खडा [उ०] कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि; जस्सस्थि तस्स जहन्नेणं एको वा दो वा तिनि या, उकोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा, एवं जाव-मणुस्सत्ते, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियत्ते जहा असुरकमारते। २३. प्रि०] पगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा ? [उ०] एवं जहा नेरइयस्स वत्तवया भणिया, तहा असुरकुमारस्स वि भाणियचा, जाव-वेमाणियत्ते, एवं जाव-थणियकुमारस्स, एवं पुढविका- . इयस्स वि, एवं जाव-वेमाणियस्स, सन्वेसि एको गमो। २४. [प्र०] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया वेउधियपोग्गलपरियट्टा अतीता ? [उ०] अर्णता, [प्र०] केवतिया पुरेक्खडा ? [उ०] एकोत्तरिया जाव-अणंता वा, एवं जाव-थणियकुमारत्ते। - २५. [प्र०] पुढवीकाइयत्ते पुच्छा । [उ०] नत्थि एक्कोऽवि, [प्र०] केवतिया पुरेक्खडा ? [उ.] नत्थि एकोऽवि, एवं जत्थ वेउवियसरीरं अत्थि तत्थ एगुत्तरिओ, जत्थ नत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियचं, जाव-चेमाणियस्स वेमाणियत्ते । तेयापोग्गलपरियट्टा, कम्मापोग्गलपरियट्टा य सवत्थ एक्कोत्तरिया भाणियचा, मणपोग्गलपरियट्टा सवेसु पंचिंदिएसु एगोत्तरिया, विगलिदिएसु नत्थि । वइपोग्गलपरियट्टा एवं चेव, नवरं एगिदिएसु नत्थि भाणियधा। आणापाणुपोग्गलपरियट्टा सवत्थ एकोत्तरिया, जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । एक नैरयिकने नैर- २०. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने नैरयिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो अतीत-थया छे ! [उ०] तेओने एक यिकपणामा नौदा पटलपरिवर्त, पण औदारिकपुद्गलपरिवर्त थयो नथी. [प्र०] केटला औदारिक पुद्गलपरिवर्ती थवाना छे ! [उ० तेओने एक पण थबानो नथी. एक नैरपिकने भमु. २१. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने असुरकुंमारपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छे ! [उ०] उपर कह्या प्रमाणे रपणामा नौदारिक - जाणवू, ए प्रमाणे जेम असुरकुमारपणामां कडं तेम यावत् स्तनितकुमारपणामां पण जाणQ. पुद्गलपरिवर्त. एक नैरयिकने पृथिबीकायपणामा औदा २२. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने पृथिवीकायपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो थया छे ! [उ०] अनन्ता थया छे. प्र०] केटला थवाना छे ! [उ०] कोइने थवाना छे अने कोइने थवाना नथी, जेने थवाना छे तेने जघन्यथी एक, बे के त्रण थवाना छे' अने उत्कृष्टथी संख्याता, असंख्याता के अनन्ता थवाना छे, ए प्रमाणे यावत् मनुष्यपणामां पण जाणवु. तथा वानव्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिकपणामां जेम असुरकुमारपणामां कयुं तेम जाणवू. एक भसुरकुमारने नैरयिकपणामां और दारिकपुद्गलपरिवत. २३. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक असुरकुमारने नैरयिकपणामां केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्तो अतीत-थया छे ! [उ०] जेम नैर, यिकनी वक्तव्यता कही तेम असुरकुमारनी पण वक्तव्यता कहेवी. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिकपणामां कहेवू. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमार सुघी कहे. ए प्रमाणे पृथिवीधी आरंभी यावद् वैमानिकसुधी बधाओने एक गम-पाठ कहेवो. एक नैरयिकने नर- २४. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिकने नैरयिकपणामां केटला वैक्रियपुद्गलपरिवर्तो थया छे ? [उ०] अनन्ता थया छे. [प्रक यिकपणामा क्रिया HER' केटला थवाना छे ? [उ०] हे गौतम ! एकथी मांडीने यावद् अनन्ता थवाना छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारपणाम जाणवू. नैरयिकने पृथिवीकापिकपणामां वैक्रियः युगलपरिवर्त. २५. [प्र०] पृथिवीकायिकपणामा प्रश्न.-एक एक नैरयिकने पृथिवीकायिकपणामां वैक्रियपुद्गलपरिवों केटला थया छे! [उन एक पण नथी. [प्र०] केटला थवाना छे ? [उ०] एक पण नथी. ए प्रमाणे जे जीवोने वैक्रियशरीर छे तेओने एकादि पुद्गलपरावर जाणवा, अने जेओने वैक्रियशरीर नथी तेओने पृथिवीकायिकपणामां का छे तेम कहेवं, यावद् वैमानिकने वैमानिकपणामां कहे. तैजसपुद्गलपरिवर्तो अने कार्मणपुद्गलपरिवर्ती सर्वत्र एकथी मांडीने अनन्तसुधी कहेवा. मनःपुद्गलपरिवर्तो बधा पंचेन्द्रियोमा एकथी आरंभी [अनन्त सुधी] कहेवा. ते (मनःपुद्गलपरिवर्तो) विकलेन्द्रियोमा नथी. वचनपुद्गलपरिवर्तो पण ए प्रमाणे जाणवा; परन्तु विशेष ए छे के ते एकेन्द्रिय जीवोमा नथी. श्वासोच्छासंपुद्गलपरिवों बधा जीवोमा एकथी मांडीने वधारे जाणवा; यावद्-वैमानिकने वैमानिकपणामां कहेवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy