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________________ २७० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १२.-उद्देशक ४. सिए खंधे भवति; अहवा एगयओ संखेजा संखेजपएसिया खंधा, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे भवति; अंहवा संखेजा असंखेजपएसिया खंधा भवंति । असंखेजहा कजमाणे असंखेजा परमाणुपोग्गला भवंति ।। १२. [प्र०] अणंता णं भंते! परमाणुपोग्गला जाव-किं भवति ? [उ०] गोयमा! अणंतपएसिए खंधे भवति से भिजमाणे दुहाऽवि तिहाऽवि जाव-दसहाऽवि संखेजा-असंखेजा-अणंतहाऽवि कजइ । दुहा कजमाणे एगयो परमाणुपोमंगले एगयओ अणंतपपसिए खंधे भवति; जाव-अहवा दो अणंतपएसिया खंधा भवंति । तिहा कजमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिप, एगयो अणंतपपसिए खंधे भवति; जाव-अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ असंखेजपएसिए खंधे, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति; अहवा एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयो दो अणंतपएसिया खंधा भवंति, एवं जाव-अहवा एगयओ दसपएसिप खंधे, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति; अहवा एगयओ संखेजपदेसिए खंधे, एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति; अहवा एगयओ असंखेजपएसिए खंधे एगयओ दो अणंतपएसिया खंधा भवंति; अहवा तिन्नि अणंतपएसिया खंधा भवंति । चउहा कज्जमाणे एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति; एवं चउक्कसंजोगो, जाव-असंखेजगसंजोगो, एते सच्चे जहेव असंत्रेजाणं भणिया तहेत अणंताणऽवि भाणियचं, नवरं एक्कं अणंतगं अभहियं भाणियवं, जाव-अहवा एगयओ संखेजा संखेजपएसिया खंधा, एगयो अणंतपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ संखेजा असंखेजपएसिया खंधा, एगयो अणंतपएसिए खंधे भवति, अहवा संखेजा अणंतपएसिया खंधा भवंति । असंखेजहा कजमाणे एगयओ असंखेजा परमाणुपोग्गला, एगयओ अणंतपपसिए खंधे भवइ; अहवा एगयओ असंखेजा दुपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति, जाव-अहवा एगयओ असंखेजा संखेजपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ असंखेजा असंखेजपएसिया खंधा, एगयओ अणंतपएसिए खंधे भवति, अहवा असंखेजा अणंतपएसिया खंधा भवंति । अणंतहा कज्जमाणे अणंता परमाणुपोग्गला भवंति । असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक असंख्यप्रदेशात्मक स्कन्ध होय छे. अथवा संख्याता असंख्यातादेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना असंख्य विभाग करवामां आवे तो असंख्य परमाणुपुद्गलो थाय छे. अनन्त परमाणुभो. १२. [प्र०] हे भगवन् ! अनन्त परमाणुपुद्गलो एकठा थाय अने एकठा थया पछी तेनुं शुं थाय: [उ०] हे गौतम! तेनो अनन्तप्रदेशात्मक स्कन्ध थाय. जो तेना विभाग थाय तो बे, त्रण, यावत् दस, संख्यात, असंख्यात अने अनन्त विभाग थाय. बे विभाग करवामां आवे तो एक तरफ परमाणुपुद्गल अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. - अनं०). यावद्-अथवा बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. अनं०] अनं०]. जो तेना त्रण विभाग करवामां आवे तो एक तरफ बे परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. 1. अनं०]. अथवा एकतरफ एक परमाणु, एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. ||1अनं०]. यावद्-अथवा एक तरफ एक परमाणुपुद्गल, एक तरफ असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे.| | असं०. अनं०. अथवा एक तरफ एक परमाणु, अने एक तरफ बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. | मन अनं०ा. अथवा एक तरफ एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. 1-1 अनं०/ अन.. ए प्रमाणे यावद्-अथवा एक तरफ एक दशप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ बे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. | अनं० अन०. अथवा एक तरफ एक संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ बे अनन्त प्रदेशिक स्कन्धो होय छे. [सं०] अनं० अनं०]. अथवा एक तरफ एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अने एक तरफ वे अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. असं० अनं०] अनं०. जो तेना चार भाग करवामां आवे तो एक तरफ त्रण परमाणुओ अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अनं०-ए प्रमाणे चतुष्कसंयोग, यावद्-संख्यातसंयोग कहेवो. ए बधा संयोगो असंख्यातनी पेठे अनन्तने पण कहेवा; परन्तु एक 'अनन्त' शब्द अधिक कहेवो, यावद्-अथवा एक तरफ संख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ संख्याता असंख्येयप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा संख्याता अनंतप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना असंख्याता विभाग करीए तो एक तरफ असंख्यात परमाणुपुद्गलो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्त प्रदेशिक स्कंध होय छे, यावद्-अथवा एक तरफ असंख्याता संख्यातप्रदेशिक स्कन्धो अने एक तरफ एक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा एक तरफ असंख्याता असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धो भने एक तरफ अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध होय छे. अथवा असंख्याता अनन्तप्रदेशिक स्कन्धो होय छे. जो तेना अनन्त विभाग करवामां आवे तो अनन्त परमाणुपुद्गलो थाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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