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________________ शतक ११. - उद्देशक ११. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २४५ - अट्ठ सोवन्नियाओ पडिसेजाओ ३, अट्ठ हंसासणाई, अट्ठ कोंचासणारं, एवं गरुलासणाई, उन्नयासणारं, पणयासणाई, दीहासणाई, महासणारं, पफ्लासणाई, मगरासणारं, अड्ड पडमासणाई, भट्ट दिसासोबत्थियासणाई, बठ्ठ तेहसमुग्गे, जहा रावप्यसेण, जाय अट्ट सरिसचसमुग्गे, अट्ट खुजाबो, जहा उच्चाइए, जाव अट्ट पारिसीओ, अट्ठ छत्ते, अट्ठ उत्तधारिओ बेडीओ, अट्ट चामराओ, घट्ट चामरधारीओ चेडीओ, बटु तालियंटे, अड्ड तालिवंटधारीत्रो बेडीओ, अट्ठ करोडियाधारीओ बेडीओ, जह खीरघातीओ, जाव- अट्ठ अंकधातीओ, अट्ठ अंगमद्दियाओ, अट्ठ उम्मदियाओ, अट्ठ ण्हावियाओ, अट्ठ पसाहियाओ, अष्टु धनपेसीओ, अट्ट चुनगपेसीओ, अट्ठ कोडागारीओ अट्ठ दवकारीओ अट्ठ उवत्याणियाज, अद्रु नाडरखाओ, अड्डु कोहुंचिणीओ, अट्ट महाणसिणीओ, भट्ट भंडागारिणीओ अ अन्झाधारिणीओ, अट्ठ पुष्कधरणीओ, अट्ठ पाणिघरणीओ, ब बलिकारीओ, अट्ठ अट्ठ सेज्जाकारीओ, अट्ठ अभितरियाओ पडिहारीओ अट्ठ बाहिरियाओ पडिहारीओ अट्ठ मालाकारीओ, अट्ठ पेसणकाओ, अन्नं वा सुबहुं हिरन्नं वा सुवन्नं वा कंसं वा दूसं वा विउलघण-कणग० जाव-संतसारसावएजं, अलाहि जाब आससमाज कुसाओ पकामं दार्ड, पकामं भोतुं पकामं परिभाषडं तर गं से महत्वले कुमारे एगमेगाए भजाए एगमेगं हिरनकोडिं दयति, एगमेगं सुचनकोर्डि इलयति, एगमेगं मउ उडप्पवरं दृलयति एवं तं चैव सर्व जाय एगमेगं पेसणकारिं दलयति, अन्नं वा सुबहुं हिरन्नं वा जाव - परिभाएउं । तए णं से महब्बले कुमरे उप्पि पासायवरगए जहा जमाली जाव-विहरति । , ३३. तेणं कालेणं तेणं समरणं विमलस्स अरहओ पओप्पर धम्मयोसे नामं अणगारे जाइसंपन्ने, वनभो जहा केसिसामिस्स, जाय पंचहि अणगारसहिं सद्धि संपरिवुडे पुचाणुपुधिं चरमाणे गामाणुन्गामं दृतिखमाणे जेणेव हत्यिणागपुरे दीपो ( हांडीओ ), आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना - रुपाना उत्कंचनदीपो ( दंडयुक्त दीवाओ ), ए प्रमाणे त्रणे जातना पंजरदीपो-फानसो, आठ सोनाना, आठ रुपाना अने आठ सोना-रुपाना थाळी, आठ सोनानी, आठ रुपानी अने आठ सोना-रुपानी पात्रीओ, ( नाना पात्रो ), ए प्रमाणे त्रणे जातना आठ स्थासको तासको, आठ मल्लको चपणीया, आठ तलिका - रकेबीओ, आठ कलाचिका - चमचा, आठ तावेयाओ, आठ तवीओ, आठ पादपीठ - ( पण मूकवाना बाज़ोठ), आठ मिसिका ( अमुक प्रकारना आसनो), आठ करोटिका (अमुक जाताना पात्रो, छोटा अथवा कचोला), आठ पलंग, आठ प्रतिशष्या (टोपणी प्रमुख नानी बीजी शय्याओ), आठ हंसासनो, आठ क्रींचासनो, एप्रमाणे गरुडासनो, उंचा आसनो, नीचा आसनो, दीर्घासनो, भद्रासनो, पक्षासनो, मकरासनो, आठ पद्मासनो, आठ दिवस्वस्तिकासनो, आठ तेलना डाबडा - इत्यादि बधुं * राजप्रश्नीय सूत्रमां कह्या प्रमाणे कहेतुं, यावद् आठ सरसवना डाबडा, आठ कुब्ज दासीओ - इत्यादि बधुं औपपातिक सूत्रमां का प्रमाणे कहेनुं यावत् आठ पारसिक देशनी दासीओ; आठ छत्रो, आठ छत्र धरनारी दासीओ, आठ चामरो, आठ चामर वरनारी दासीओ, आठ पंखा, आठ पंखा वींजनारी दासीओ, आठ करोटिका - तांबूलना करंडिया ने धारण करनारी दासीओ, आठ क्षीरधात्रीओ (दूध पानारी धावो), यावद् आठ अंकधात्रीओ (खोव्यमां रमाडनारी पावो) आठ अंगमर्दिकाओ, शरीरनुं अल्प मर्दन करनारी दासीओ, आठ उन्मर्दिकाओ ( अधिक मर्दन करनारी दासीओ), आठ स्नान करायनारी दासीओ, आठ अलंकार पहेरायनारीओ आठ चंदन पसनारीओ, आठ तांबूल चूर्ण पीसनारीओ, आठ कोष्ठागारनुं रक्षण करनारी, आठ परिहास करनारी, आठ सभामां पासे रहेनारी, आठ नाटक करनारीओ, आठ कौटुंबिफीओ साचे जनारी दासीओ, आठ रसोइ करनारी, आठ मांडागारनुं रक्षण करनारी, आठ मारणो, आठ पुष्प धारण करनारी, आठ पाणी लावनारी, आठ बलि करनारी, आठ पथारी तैयार करनारी, आठ अंदरनी अने आठ बहारनी प्रतिहारीओ, आठ माला करनारीओ, आठ पेषण करनारी, अने ए शिव बीडं धणुं हिरण्य, सुवर्ण, कांसुं, वन तथा विपुल धन, क्लक, यावत् विद्यमान सारभूत धन आप्णुं, से सात पेढीसुधी इच्छापूर्वक आपया अने भोगक्याने परिपूर्ण हतुं प्यार बाद ते महावल कुमार दरेक श्रीने एक एक हिरण्यकोटि, एक एक सुवर्णकोटि अने मुकुटोमां उत्तम एक एक मुकुट आपे छे. ए प्रमाणे पूर्वोक्त सर्व वस्तुओ एक एक आपे छे, यावत् एक एक पेषण करनारी दासी तथा बीजुं पण घणुं हिरण्य यावद् वहेंची आपे छे. त्यार पछी ते महाबल कुमार उत्तम प्रासादमां उपर बेसी /जमालिनी पेठे याय मिले. , आगमन. २३. ते काले ते समये विमलनाथ तीर्थंकरना प्रपौत्र-प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार दता, ते जातिसंपन्न हता इत्यादि वर्णन भा केशी खामीनी पेठे जाणवं यावत् तेओ पांचसो साधुना परिवारनी साधे अनुक्रमे एक गामथी बीजे गाम विहार करता, ज्यां हस्तिनागपुर नामे नगर छे, अने ज्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान छे त्यां आवे छे, आवीने यथा योग्य अवग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपवडे आत्माने ३२ * जुओ राजप्रश्नीय प० ६८- १ + जुओ ओपपा० प० ७६-२ जमालिनुं वर्णन जुओ भग० खं० ३० ९४०३३ १० १६६. ३३१ जुओ राजप्र० प० ११८ - १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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