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शिवराजर्विने
विभंगहान
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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ११ - उद्देशक ९. प्पा अहे ताइं समादद्दे ।" महुणा य घपण य तंदुलेहि य अरिंग हुणइ, अरिंग हुणित्ता चरुं साहेइ, वरं साहेता बलि हसदेव करे ० २ अतिहिपूयं करे, अतिहि० २ तब पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति ।
६. तपणं से सिवे रायरिसी दोघं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ता णं विहरइ । तप णं से सिवे रायरिसी दोघे छट्ठक्स. मणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरहर आयावण २ एवं जहा पढमपारणगं, नवरं दाहिणगं दिसं पोषखेति, दाहिण० २ दाहिणार दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव आहारमाहारे । तर णं से सिवे रायरिसी त 'छट्टक्खमणं उवसंपज्जित्ता णं विहरति । तप णं से सिवे रायरिसी सेसं तं चैव नवरं पञ्चच्छिमार दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चैव जाव आहारमाहारेह । तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ता णं विहरद्द, तणं से सिवे रायरिसी चउत्थछट्ठक्खमण० एवं तं चेव, नवरं उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराप दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाने पत्थियं अभिरक्स सिर्प, सेसं तं चैव जाय तो पच्छा अप्यणा आहारमाहारे ।
७. तप णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं जाव - आयावेमाणस्स पराइमइयाए आव - विणीययाए अन्नया कया वि तयावरणिजाणं करमाणं खओवसमेणं ईहा-पोह-मग्गण - गवेसणं करेमाणस्स विन्भंगे नाम नाणे समुपने से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्यन्नेणं पासद अरिंस टोए सत्त दीवे सत्त समुद्दे, तेन परं न जाणति न पासति ।
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८. तरणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेवारूवे अन्मस्थिर जाच समुप्यजित्या- 'अत्थि णं ममं अइसेसे नाण-इंस समुप्पत्रे, एवं सतु अरिंस टोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेज परं योच्छिया दीया य समुद्दा य एवं संपेद्देर, पर्व० २ आायाaणभूमीओ पचोरुहद्द, आ० २ वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छद्द, तेणेव० २ सुबहुं लोही- लोहकडाहकडुच्छ्रयं जाव-भंडगं किढिणसंकाइयं च गेण्हर, २ जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छर, तेणेच ० २ अंडनिफ्से करे मंड० २ दत्थिनापुरे नगरे सिंघाडग तिग० जाय पसु बहु जणरस एवमादपसर, जाव एवं परयेद'शत्थि णं देवाणुप्पिया ! ममं अतिसेसे नाण-दंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए जाव दीवा य समुद्दा य' । तए णं तस्स
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एकठा करे छे." पछी मध, घी अने चोखा वडे अग्निमां होम करे छे, होम करीने चरु - बलि तैयार करे छे, अने बलिथी वैश्वदेवनी पूजा करे छे, मारवाद अतिथिनी पूजा करी ते शिव राजर्षि पोते आहार करे छे.
६. ज्यावाद ते शिवराजर्षि फरीवार छड तप करीने विहरे छे, पछी ते शिवराजर्षि आतापनाभूमिथी उतरी बल्कनुं यह पहेरे के इत्यादि वधुं प्रथम पारणानी पेठे जाणवु परन्तु विशेष ए छे के बीना पारणा वखते दक्षिण दिशाने प्रोक्षित करे-पूजे, तेम वतीने एम कहे के 'दक्षिण दिशाना ( लोकपाल ) यम महाराजा प्रस्थान - परलोकसाधन - मां प्रवृत्त थएला शिवराजर्षिनुं रक्षण करो" इत्यादि सर्व पूर्वपत् कहेतुं यावत् पोते आहार करे छे. पछी ते शिवराजर्षि जीजा छट्ट तपने स्वीकारी विहरे छे, तेना पारणानी बधी हकिकत पूर्वनी पेठे जाणवी, परन्तु विशेष ए छे के, पश्चिम दिशानुं प्रोक्षण-पूजन करे, अने एम कहे के पश्चिम दिशाना ( लोकपाल ) वरुण · महाराजा प्रस्थान - परलोक साधनमा प्रवृत्त थपेका शिव राजर्षिनुं रक्षण करो, बाकी वधुं पूर्व प्रमाणे जाग यावत् आर पछी ते आहार करे पछी ते शिवराजर्षि चोथा छट्टना तपने स्वीकारी विहरे छे- इत्यादि पूर्ववत् जाणवुं. परन्तु ( चोथे पारणे ) उत्तर दिशाने पूजे छे, अने एम कहे छे के 'उत्तर दिशाना (लोकपाल ) वैश्रमण महाराजा धर्मसाधनमां प्रवृत्त थयेला शिवराजर्षिनुं रक्षण करो, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाण यावत् प्यार पछी पोते आहार करे छे.
७.९ प्रमाणे निरंतर
उट्टना तप करयाथी दिनचकवा तप करता यावत् आतापना लेता ते शिवराजर्षिने प्रकृतिनी भद्रता अने यावद् विनीतताथी अन्य कोइ दिवसे तेना आवरणभूत कर्मोंना क्षयोपशम थ्वाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषण करता विभंग ना ज्ञान उत्पन्न . पछी ते उत्पन्न थयेला ते निभंगज्ञान बड़े आ लोकमां सात द्वीपो अने सात समुद्रो हुए छे, ते पछी आगळ जाणता नयी के जोता नथी.
शिवराजर्षिनो सात
८. साबाद ते शिवराजर्षिने आ आया प्रकारनो अध्यवसाय उत्पन्न भयो के, 'मने अतिशयवालुं ज्ञान अने दर्शन अपन प तमु भने ए प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, अने त्यारपछी द्वीपो अने समुद्रो नथी' - एम विचारे छे, विचारीने आठापना भूमिश्री इनो अध्यवसाय.
नीचे उतरे छे, अने वाकलना वो पहेरी यो पोतानी झुपडी छे त्यां आयी अनेक प्रकारना लोढी, छोढाना कडायां अने कच्छा यावद् बीजा उपकरणो अने कावडने ग्रहण करे छे, अने ज्यां हस्तिनापुर नगर छे अने ज्यां तापसोनुं यावद् आश्रम छे त्यां आवे छे, आव उपकरण वगेरेने मूके छे, अने हस्तिनापुर नगरमां शृंगाटक, त्रिक, यावद् राजमार्गोमां घणा माणसोने एम कहे छे, यावदू एम प्ररूपे छे के, 'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवालुं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयुं छे, अने आ लोकमां ए प्रमाणे सात द्वीपो अने सात समुद्रो छे,'
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